न्यूयॉर्क, 5 अगस्त | एक अध्ययन में सामने आया है कि वायु प्रदूषण की वजह से फेफड़े के कैंसर, विशेष तौर से एडिनोकार्सिनोमा के मरीजों की तुलना में फेफड़े के कैंसर के प्रारंभिक अवस्था के मरीजों की जीवन अवधि में कमी आ जाती है। एडिनोकार्सिनोमा आमतौर पर होने वाला गैर-छोटी कोशिकाओं वाला फेफड़े का कैंसर है, जो 80 फीसद फेफड़े के कैंसर का कारण होता है।
फाइल फोटो: आईएएनएस
वायु प्रदूषण से फेफड़े के कैंसर और मौत के ज्यादा मामले जुड़े होते हैं। लेकिन बहुत कम मामलों में इसकी पहचान के बाद किसी व्यक्ति के जीने की संभावना तलाशी जा सकती है।
इसे जानने के लिए शोधकर्ताओं ने औसत 69 साल की उम्र वाले फेफड़े के करीब 3,52,000 मरीजों के रिकॉर्ड खंगाले।
इससे पता चला कि आधे से ज्यादा (53 प्रतिशत) मरीजों में कैंसर का पता ज्यादा फैल जाने के बाद पता चला और प्रारंभिक अवस्था में इस बीमारी के औसत जीवन काल का समय करीब 3.6 साल है।
देखा गया कि प्रारंभिक अवस्था के मरीजों का औसत जीवन काल, छोटे और बड़े कैंसर कोशिकाओं वाले मरीजों (करीब 1.5 साल) और सबसे बड़े रोगियों एडिनोकार्सिनोमा (करीब 5 साल) के मुकाबले सबसे कम था।
जब इन मरीजों के वायु गुणवत्ता नियंत्रण केंद्रों से आंकड़े जुटाए गए तो पता चला कि औसतन ये मरीज नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, ओजोन और 10 माइक्रोमीटर से कम पर्टिकुलेट मैटर और 2.5 माइक्रोमीटर वाले स्थानों पर रहते हैं।
जिन मरीजों पर अध्ययन किया गया, उन में से आधे के करीब (45.4 प्रतिशत) बड़े अंतर्राज्यीय सड़कों के 1500 मीटर के दायरे में रहते हैं, जबकि 10 प्रतिशत के करीब 300 मीटर के दायरे में रहते हैं।
पत्रिका ‘थोरेक्स’ में प्रकाशित हार्वड मेडिकल स्कूल के शोधकर्ता जैमे ई. हर्ट ने कहा, “आकंड़े बताते हैं कि ज्यादा प्रदूषण वाले चार प्रदूषकों के संपर्क में रहने से मौत का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे मरीजों के जीने की औसत अवधि बमुश्किल पांच साल रहती है।” –आईएएनएस
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