नई दिल्ली, 20 मई (जनसमा)। कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने कहा है की जीएसटी कॉउन्सिल द्वारा जीएसटी की विभिन्न कर दरों में डाली गयी वस्तुओं की सूची मौटे तौर पर लगभग ठीक है लेकिन आम आदमी से जुडी अनेक महत्वपूर्ण वस्तुओं को उच्च कर की श्रेणी में डालने से कीमतों का ढांचा गड़बड़ा जाने की आशंका है ।
कैट ने इस सूची का व्यापक अध्यन करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली को एक ज्ञापन देने का निर्णय लिया है जिसमें ऐसी वस्तुओं की निम्न कर की दरों में डाले जाने की सिफारिश की जायेगी। कैट ने वित्त मंत्री से आग्रह किया है की कर स्लैब में डाली गयी वस्तुओं की सूची पर विचार करने के लिए सरकार अधिकारिओं, व्यापार एवं उद्योग के प्रतिनिधिनियों की एक कमेटी का गठन कर दे जिससे आपसी सहमति के आधार पर सूची को अंतिम रूप दिया जाए ताकि जीएसटी को अपनाने में कोई परेशानी न हो ।
कैट ने केंद्रीय वित्त मंत्री से आग्रह किया है की अब जीएसटी को 1 जुलाई से देश में लागू कर देना चाहिए लेकिन 31 मार्च 2018 तक की अवधि को ट्रायल पीरियड घोषित किया जाए जिसके अंतर्गत छोटी-मोटी गलतियों पर किसी भी व्यापारी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हो और इस अवधि के दौरान आने वाली परेशानियों का निराकरण करते हुए जीएसटी को ज्यादा से ज्यादा पालना करने वाला कर ढांचा बनाया जाए ।
कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी.सी.भरतिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने कहा कि जीएसटी कौंसिल द्वारा जारी सूची को एक नज़र से देखने पर पता लगता है की कुछ वस्तुएं जिन्हे 28 प्रतिशत के कर स्लैब में रखा गया, उन पर दोबारा विचार किये जाने की जरूरत है जिससे देश के छोटे व्यापारिओं और एमएसएमई सेक्टर के व्यापार पर दुष्प्रभाव न पड़े। उन्होंने कहा की मिसाल के तौर पर अचार, सॉस, इंस्टेंट मिक्सर सहित फ़ूड प्रोसेसिंग के अनेक उत्पादों को 18 प्रतिशत कर की श्रेणी में रखा गया है जबकि देश भर में इनका उपयोग बड़ी मात्रा में आम लोगों द्वारा किया जाता है । लिहाजा श्रेयस्कर होगा यदि इन्हे कम दर के स्लैब में रखा जाए ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाउसिंग सेक्टर को विकसित करने पर बेहद जोर दिया जा रहा है लेकिन सीमेंट, मार्बल, पेंट, प्लाईवुड, बिल्डर हार्डवेयर जैसे अनेक उत्पादों को 28 प्रतिशत की कर श्रेणी में रखे जाने से रियल एस्टेट सेक्टर और इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट को कहीं न कहीं धक्का पहुंचेगा । इस प्रकार के उत्पादों को 18 प्रतिशत से अधिक की कर श्रेणी में न रखा जाए।
दोनों व्यापारी नेताओं ने कहा कि ऑटो स्पेयर पार्ट्स एक प्रकार से रॉ मटेरियल का काम करते हैं और वाहनों की मेंटेनेंस और रिपेयर में बड़ी भूमिका निभाते हैं । बड़े पैमाने पर देश भर में छोटे व्यावसायी वाहनों की मरम्मत में ऑटो स्पेयर पार्ट्स का उपयोग करते हैं, इनको 28 प्रतिशत के कर स्लैब में डालने विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। इनको 5 प्रतिशत के कर स्लैब में डाला जाए ।
सूची में अनेक स्थानों पर ब्रांडेड उत्पादों को उच्च कर श्रेणी में रखा गया है । यह समझा जा रहा है कि सरकार की मंशा है बड़ी कंपनियों के ब्रांडेड उत्पाद जिनका उपयोग अभिजात्य वर्ग करता है उन्हें इस श्रेणी में रखा जाए । इसको ध्यान में रखते हुए ब्रांडेड शब्द की परिभाषा को स्पष्ट करना बेहद जरूरी है क्योंकि बड़ी संख्या में छोटे निर्माता आम लोगों के लिए सामान बनाते हैं और ब्रांडेड शब्द के अंतर्गत उन्हें भी न ले लिया जाए ।
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