विश्व ===पंतनगर (उत्तराखंड), 28 नवंबर | उत्तर प्रदेश में कुशीनगर के एक किसान सचिदानंद राय ने औषधीय पौधों की खेती शुरू कर अपनी आय काफी बढ़ा ली है। इसके साथ ही राय ने दुर्लभ औषधीय प्रजातियों के पौधों के संरक्षण में भी योगदान किया है। इससे पहले राय अपने पांच एकड़ के खेत में गेहूं और धान सहित परंपरागत अनाजों की खेती करते थे।
राय ने जून में पहली बार शलपर्णी (एक दुर्लभ औषधीय पौधा, जो च्यवनप्राश में इस्तेमाल किया जाता है) अपने एक बीघा खेत (एक एकड़ के पांचवें हिस्से पर) में लगाया।
राय ने से कहा, “यदि हम एक बीघा में धान बोते हैं, तो इसमें 14,000 से 15,000 रुपये की लागत आती है और मुझे करीब इतनी ही राशि इसके उत्पादन के बाद बेचने पर मिलती है।”
राय ने कहा, “इस बार मुझे शलपर्णी से चार गुना लाभ हुआ है।”
राय ने कहा कि उनकी योजना साल 2017 में औषधीय वनस्पतियों की खेती को दो बीघा में विस्तार देने की है। इससे जुड़ने के कुछ अतिरिक्त लाभ हैं।
राय ने कहा, “एक बार औषधियों को बोने के बाद एक व्यक्ति साल भर में इससे दो-तीन बार फसल ले सकता है। इसका मतलब है कि अगले दो बार में ज्यादा लाभ होगा और लागत खर्च बहुत कम होगा।”
उन्होंने कहा कि उनके गांव के बहुत से लोग अपने कुछ जमीन में कई तरह की औषधीय जड़ी-बूटियां उगा रहे हैं, जिनका अच्छा व्यापारिक मूल्य है।
उन्होंने कहा कि पारंपरिक अनाज उगा रहे किसान कुछ घंटों के प्रशिक्षण से शलपर्णी की खेती में पारंगत हो जाएंगे।
राय ने डाबर इंडिया लिमिटेड द्वारा आयोजित एक विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। यह इसके पर्यावरण स्थिरता रणनीति का हिस्सा था।
डाबर शोध एवं विकास केंद्र के जैव संसाधन समूह के प्रमुख, सर्वपल्ली बद्री नारायण ने कहा कि इस पहल में जनजातियों और किसानों को शामिल किया गया है। इसके जरिए आठ राज्यों के 2500 परिवारों को फायदा होगा।
नारायणन ने कहा, “हमने सिर्फ सीमांत किसानों और जनजातीय समुदायों में औषधीय पौधों को अपनी जमीन के थोड़े भाग पर उगाने के लिए प्रोत्साहित किया। हम उन्हें इसमें प्रौद्योगिकी मदद भी दे रहे हैं।”
आईएएनएस संवाददाता ने उत्तराखंड के पंतनगर में बने ग्रीनहाउस का दौरा किया। इसमें पूरी तरह से आधुनिक तकनीक से औषधीय पौधों -अकारकाला, अतिविशा, शलपर्णी और दूसरे पौधों- को उगाया जा रहा है। यह खास तौर से औषधीय पौधों के लिए समर्पित है।
यहां से किसानों को औषधीय पौधे की खेती के लिए मानक के अनुसार पौधों की आपूर्ति की जाती है।
अधिकारी ने कहा, “हम कई तरह के पौधों की जरूरत के अनुसार कृत्रिम वातावरण बना सकते हैं।”
नारायण ने कहा, “समुदाय के साथ निरंतर जुड़े रहने से दुर्लभ पौधों की प्रजातियों को फिर से पुनजीर्वित करने मदद मिली है। इससे कृषि और वन आधारित समुदायों में आजीविका का एक स्थायी स्रोत भी स्थापित हुआ है।”
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