संत कबीर दास की 500वीं पुण्यतिथि पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 28 जून 2018 को उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर में ‘संत कबीर अकादमी’ की आधारशिला रखेंगे और उनकी परिनिर्वाण स्थल, मगहर में उनकी समाधि पर चादर चढ़ाएंगे तथा जनसभा को संबोधित करेंगे।
संत कबीर की मृत्यु सन् 1500 ईस्वी में हुई थी। हिन्दी साहित्य में उन्हें भक्तिकाल का रहस्यवादी कवि माना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि पेशे से जुलाहे संत कबीर का जन्म वाराणसी के निकट लहरतारा में हुआ था। उनकी मृत्यु और जन्म की तिथियों को लेकर भी विद्वानों के अलग-अलग विचार हैं।
उस काल की लोक-मान्यता के अनुसार मगहर में मृत्यु को अशुभ माना जाता था। इस लोक विश्वास को झुठलाने के लिए कबीर अपनी मृत्यु के कुछ समय पहले मगहर चले गये।
फोटो एआईआर ट्विटर से साभार
कबीर ने कह था ‘‘कबिरा काशी मरे तो रामहि कौन निहौरा’’।
लोक विश्वास यह भी है कि कबीर की मृत्यु के बाद उनकी चादर के नीचे फूल मिले थे। उस काल खण्ड में हिन्दू और मुसलमानों ने आधा-आधा बांट लिया था। इसके बाद दालनों ही धर्मों के अनुयायियों ने अपनी-अपनी परंपराओं और मान्यता के अनुसार कबीर की समाधियां बनाईं।
मगहर में आमी नदी के दाहिने तट पर ये समाधियां आज भी मौजूद हैं।
कबीर ने जीवन के यथार्थ चित्रण करते हुए कहा था –
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर।