भारत में स्कूल जाने वाले 10 प्रतिशत से अधिक बच्चे दमा से पीड़ित हैं। यदि दमे को ठीक से नियंत्रित नहीं किया जाए तो बच्चे की शारीरिक वृद्धि में बाधा आ सकती है।
दमे के बारे में आपात स्थिति में उठाए जाने वाले कदमों की जानकारी नहीं होने के कारण हाल में स्कूलों में बच्चों की मौतों के अनेक मामले सामने आए हैं।
इन हालातों के संदर्भ में केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने बुद्धवार को नई दिल्ली में दमे के बारे में स्कूलों के लिए 11 भाषाओं में एक नियमावली जारी की।
इस नियमावली को नियमावली को 1 लाख से अधिक स्कूलों में लागू करने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा स्वीकार किया गया है।
Photo courtesy : Lung Care Foundation Facebook
नियमावली को पर्यावरण क्लबों (इको क्लबों) के जरिये देश के एक लाख से अधिक के स्कूलों में लागू किया जाएगा।
इस पहल के बारे में लंग केयर फाउंडेशन के सह संस्थापक अभिषेक कुमार ने कहा कि भारत में दमा की प्रवृत्ति वाले बच्चों की संख्या बढ़ रही है, इसलिए ऐसी जानकारी काफी महत्वपूर्ण होगी।
स्कूल जाने वाले 10 प्रतिशत से अधिक बच्चे दमा से पीड़ित हैं। यदि दमे को ठीक से नियंत्रित नहीं किया जाए तो बच्चे की शारीरिक वृद्धि में बाधा आ सकती है। इसका बच्चे पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ सकता है।
दमे के बारे में और आपात स्थिति में उठाए जाने वाले कदमों की जानकारी नहीं होने के कारण हाल में स्कूलों में अनेक मौतों के मामले सामने आए हैं।
इन सभी को रोका जा सकता है और यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि स्कूल का नेतृत्व और कर्मचारी समस्या की गंभीरता को समझकर दमे के लिए अनुकूल माहौल बनाएं और एक आपात दमा प्रबंधन योजना तैयार करें।
यह समझने की आवश्यकता है कि दमे से पीड़ित बच्चे सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते हैं। दमे को यदि नियंत्रण में कर लिया जाए तो ये बच्चे उच्च स्तर के खेलों की प्रतिस्पर्धा में भी भाग ले सकते हैं।
इस नियमावली का डिजाइन इस प्रकार तैयार किया गया है कि अध्यापक, स्कूल प्रशासन, माता-पिता और छात्र सहित स्कूल समुदाय का कोई भी सदस्य इस्तेमाल कर सकता है।
यह नियमावली भारत में अपने किस्म की पहली है और इससे देश के छात्रों के लिए एक सुरक्षित माहौल देने में मदद मिलेगी। इस समस्या से निपटने के लिए दुनिया के विभिन्न देशों में इसी तरह की अनेक पहलें की गई हैं।
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