नई दिल्ली, 28 मार्च | यह 1970 की बात है। भारत से फखरुल इस्लाम (जिन्हें अब फ्रैंक एम.इस्लाम के नाम से जाना जाता है) अपने सपनों के साथ जब अटलांटिक पार कर अमेरिका पहुंचे तो उसने बाहें फैलाकर उनका स्वागत किया। इतना साथ दिया कि वह भारतीय मूल के सर्वाधिक पहचाने वाले व्यवसायियों में से एक माने जाने लगे।
आज वही इस्लाम (53) इस बात को लेकर परेशान हैं कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा छह मुस्लिम देशों के आव्रजकों और यात्रियों के अमेरिका में प्रवेश पर रोक लगाने से देश शायद अपने ‘अंधकारपूर्ण समय’ की तरफ बढ़ रहा है।
ट्रंप का कहना है कि उन्होंने यह अस्थायी प्रतिबंध अमेरिका को आतंकवाद से बचाने के लिए लगाया है।
फ्रैंक इस्लाम का संबंध उत्तर प्रदेश के छोटे शहर आजमगढ़ से है। उनका अभी भी मानना है कि ट्रंप द्वारा आव्रजकों के खिलाफ उठाए गए कदमों के बावजूद अमेरिका समावेशी समाज बना रहेगा।
हाल में भारत आए इस्लाम ने एक खास मुलाकात में कहा, “मुस्लिमों पर रोक गलत, शर्मनाक और गैरसंवैधानिक है। यह वह नहीं है जो हम हैं। यह अमेरिकी मूल्य नहीं है। इस तरह का प्रतिबंध अमेरिका के अंधकारपूर्ण और कुरूप अतीत का प्रतिनिधित्व करता है। हम अमेरिकी इतिहास के एक अंधकारपूर्ण अध्याय में प्रवेश कर चुके हैं।”
उन्होंने कहा कि ट्रंप को यह समझना होगा कि अमेरिका में, विशेषकर सिलिकॉन वैली में, 35 फीसदी व्यापार आव्रजकों की वजह से है जो न केवल संपदा का निर्माण कर रहे हैं बल्कि दूसरों को रोजगार भी दे रहे हैं।
व्यावसायी से परोपकारवादी बने इस्लाम ने कहा, “मैं अब भी सुनहरा क्षितिज देख रहा हूं। मुझमें आशा और उम्मीद है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम आज भी उम्मीदों, इच्छाओं और सपनों को जन्म दे सकते हैं, न कि डर, अवसाद और गुस्से को।”
इस्लाम ने कहा कि ट्रंप उन मूल्यों के प्रतिनिधि नहीं हैं जिन पर अमेरिका खड़ा है। उन्होंने साथ ही कहा कि ‘भारत को अमेरिका से सीखना चाहिए कि सफल होने के लिए कैसे सभी को अवसर दिया जाना जरूरी है।’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया जैसी योजनाओं के संदर्भ में इस्लाम ने कहा कि अमेरिका में उद्यमियों को आगे बढ़ाने के लिए कई तरह की व्यवस्थाएं और प्रणालियां हैं जिनकी मदद से उद्यमी अपने सपने साकार करते हैं। यह ऐसी बात है जिसे भारत को भी करने की जरूरत है।
इस्लाम की कहनी फर्श से अर्श तक पहुंचने की दास्तान है। आजमगढ़ के गरीब किसान परिवार में जन्मे इस्लाम ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) से शिक्षा ली और अमेरिका पहुंचकर कई लाख डालर की आईटी कंपनी के मालिक बने। लेकिन, अपनी जड़ों को वह कभी नहीं भूले।
इस्लाम ने 2007 में अपने कारोबार को 70 करोड़ डालर में बेच दिया और अपनी पत्नी के साथ मिलकर फ्रैंक इस्लाम एंड डेबी ड्रीजमैन फाउंडेशन की स्थापना की। यह फाउंडेशन नागरिक, शैक्षिक एवं कला संबंधी क्षेत्रों में कार्यरत समूहों की आर्थिक मदद करता है।
इस्लाम की फाउंडेशन ने उनके पुराने विश्वविद्यालय एएमयू में 20 लाख डालर से एक प्रबंधन स्कूल का निर्माण किया है। उनका कहना है, “उम्मीद है कि यह स्कूल कई और फ्रैंक इस्लाम पैदा करेगा, कई और उद्यमियों को पैदा करेगा जो लोगों की जिंदगी में अच्छा बदलाव ला सकेंगे।”
इस्लाम कहते हैं कि धन कमाने से कहीं अधिक मजा इसे कमाकर बांटने और समाज के कामों में लगाने से आता है। अमेरिकी मानवता की मदद करने में हमेशा आगे रहते हैं। भारत में इस दिशा में काम करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, “भारत में अभी इस दिशा में काम जारी है। मस्जिद, मंदिर और चर्च बनाना अच्छी बात है, लेकिन लोगों में धन को निवेशित करना भी जरूरी है। यह अभी भारत में नहीं हो रहा है। यही संस्कृति भारत में भी बनानी होगी।”
–आईएएनएस
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