भोपाल, 9 अगस्त (जस)। मध्यप्रदेश के मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा की गयी जाँच में नर्मदा नदी का जल प्रदेश के सभी स्थान पर ‘ए’ श्रेणी वाला यानी कि पीने योग्य पाया गया है। विगत वर्षों में जिन स्थानों पर गुणवत्ता ‘बी’ श्रेणी (नहाने योग्य) पायी गयी थी, जन-जागरूकता कार्यक्रमों के असर से वहाँ भी इस वर्ष ‘ए’ श्रेणी पायी गयी है। बोर्ड पर्यावरणीय स्थिति के आकलन के लिये 31 बिन्दु पर हर माह मॉनीटरिंग कर रहा है। बोर्ड ने नर्मदा के किनारे इस वर्ष 4 अगस्त से पुनासा में सघन पौध-रोपण अभियान शुरू किया है।
फाइल फोटो : क्षिप्रा नदी पर बना बैराज नर्मदा के जल से लबालब भरा हुआ।
देश में यह पहली बार है कि विभिन्न उद्योग की चिमनियों से निकलने वाले धुएँ और जल में विद्यमान विषैले तत्वों की जाँच के लिये मौके पर ही सेंसर और केमरे लगाये गये हैं, जिनकी रिपोर्ट चेकिंग के लिये भोपाल में पर्यावरण निगरानी केन्द्र बनाया गया है। उद्योगों द्वारा वायु एवं जल में प्रदूषण यदि चोरी-छुपे किया भी गया तो निगरानी केन्द्र तुरंत पकड़ लेते हैं और कार्रवाई की जाती है। इससे प्रदेश का जल और वायु प्रदूषण अन्य राज्यों के मुकाबले कम है।
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन को लेकर आज पूरा विश्व चिंतित है। मध्यप्रदेश में 7 सीमेंट इकाइयों की भट्टी में प्लास्टिक अपशिष्ट नष्ट करने की व्यवस्था कर अब तक 10 हजार मीट्रिक टन से अधिक प्लास्टिक कचरे को नष्ट किया गया है। प्लास्टिक की उम्र 500 वर्ष मानी जाती है। पर्यावरण के साथ ही जानवरों द्वारा खाये जाने पर इसके काफी भयावह दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। जन-जाग्रति के लिये बोर्ड ने सभी जिलों में विशेष प्रकोष्ठ गठित किये हैं और नि:शुल्क मार्गदर्शिका बाँटी है।
सिंहस्थ-2016 के दौरान करोड़ों श्रद्धालुओं को लगातार क्षिप्रा का शुद्ध जल मिल सका, उसका कारण था क्षिप्रा नदी में 4 जगह पर कन्टीन्यूअस वॉटर क्वालिटी मॉनीटरिंग स्टेशनों की स्थापना। भोपाल स्थित पर्यावरण निगरानी केन्द्र बड़ी स्क्रीन के माध्यम से क्षिप्रा नदी के जल की गुणवत्ता का सतत आकलन करता रहता था और स्थानीय प्रशासन के माध्यम से नदी जल गुणवत्ता सुधार के लिये तुरंत आवश्यक कार्यवाही करवाता था।
प्रदेश के पाँच बड़े शहर इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, उज्जैन और जबलपुर में ई-वेस्ट संग्रहण केन्द्र, एक रिसायकल तथा डिस्मेंटलर की भी स्थापना की गयी है।
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