गुवाहाटी में शुक्रवार को रामसर स्थल दीपोर बील में राष्ट्र स्तरीय विश्व आर्द्र भूमि या नम भूमि दिवस 2018 का आयोजन किया गया।
प्रत्येक वर्ष 02 फरवरी को विश्व आर्द्र भूमि दिवस मनाया जाता है। इसी दिन आर्द्र भूमि रामसर समझौते को अपनाया गया था।
आर्द्र भूमि समझौते को रामसर समझौता कहा जाता है। यह अंतर सरकारी संधि है, जो आद्र भूमि के संरक्षण और उचित उपयोग तथा उनके संसाधनों के लिए राष्ट्रीय कार्रवाई तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का ढांचा प्रदान करती है।
यह समझौता 1971 में ईरान के रामसर शहर में अपनाया गया। भारत 1982 से इस समझैते का सदस्य है और आर्द्र भूमि के उचित इस्तेमाल में रामसर दृष्टिकोण के प्रति संकल्पबद्ध है।
आर्द्र भूमि या नमी वाली भूमि या नम भूमि , पेय जल का स्रोत है, बाढ़ में कमी लाती है, आर्द्र भूमि के वनस्पतिकरण से घरेलू और औद्योगिक कचरे की सफाई होती है और इससे जल की गुणवत्ता में सुधार होता है। आर्द्र भूमि को बचाना मानवता को बचाना है।
गुवाहाटी में शुक्रवार को रामसर स्थल दीपोर बील में राष्ट्र स्तरीय विश्व आर्द्र भूमि दिवस 2018 का आयोजन किया। इसकी थीम सतत शहरी भविष्य के लिए आर्द्र भूमि है।
यह आर्द्र भूमि शहरों और कस्बों को रहने लायक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । यह भू-जल को रिचार्ज करने, बाढ़ को कम करने, कचरे वाले जल को साफ करने तथा आय के अवसर बढ़ाने में महत्वपूर्ण है।
विश्व आर्द्र भूमि दिवस 2018 के अवसर पर अपने संदेश में केन्द्रीय पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन ने कहा, ‘विश्व आर्द्र भूमि दिवस पर मैं देश में हरित कार्यों के लिए मजबूत आंदोलन विकसित करने में आप सभी से ह्दय और आत्मा से शमिल होने की अपील करता हूं।
मेरा मानना है कि यह समाज और देश के प्रति हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है। उन बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है, जिन्होंने अभी जन्म नहीं लिया है। यह सुनिश्चित करना भी हमारा कर्तव्य है कि हम अपने बच्चों को स्वच्छ और हरित वातावरण प्रदान करें।’
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