नई दिल्ली, 29 जुलाई | देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश आर. एम. लोढ़ा ने कहा है कि हर किसी को समान रूप से न्याय दिलाने के लिए देश में त्वरित, कम खर्चीली और सुलभ न्यायिक व्यवस्था की जरूरत है। ईटीवी को दिए एक साक्षात्कार में पूर्व प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “देश में न्यायिक प्रक्रिया बेहद महंगी है। सर्वोच्च न्यायालय के वकील महज एक घंटे की फीस पांच लाख रुपये तक लेते हैं। इस संदर्भ में, न्यायिक प्रक्रिया बेहद महंगी हो गई है।”
अदालतों में मामलों के अंबार पर चिंता जताते हुए लोढ़ा ने कहा कि अदालतों को इन्हें निपटाने के लिए बिना किसी अवकाश के पूरे साल काम करना होगा।
उन्होंने कहा, “अदालतों में लंबित मामलों की संख्या बहुत अधिक है। लोग तभी इंसाफ पा सकते हैं जब अदालतें 365 दिन लगातार काम करें।”
लोढ़ा ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश रहने के दौरान उन्होंने इस समस्या से निपटने के लिए कई पहल की थीं लेकिन, बार कौंसिल के कई तकनीकी कारणों की वजह से उन्हें सफलता नहीं मिली।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में एक कठिन काम है।
उन्होंने कहा, “सरकारों और न्यायिक नियुक्तियों को करने वाले निकायों के बीच मतभेद केवल भारत में ही नहीं हैं। ऐसा पूरी दुनिया में है। महत्व की बात यह है कि बतौर न्यायाधीश जिसकी नियुक्ति हो रही हो, वह निष्पक्ष और ईमानदार हो।”
लोढ़ा ने न्यायिक सुधारों के बारे में कहा कि यह बिना पुलिस सुधार के संभव नहीं है।
लोढ़ा ने कहा, “न्यायिक सुधार तब तक संभव नहीं हैं जब तक हमारी पुलिस आधुनिक, प्रौद्योगिकी से लैस, प्रशिक्षित और काम के कम बोझ वाली नहीं हो जाती।”
जस्टिस लोढ़ा उस तीन सदस्यीय समिति के प्रमुख थे जिसने बोर्ड आफ कंट्रोल फार क्रिकेट इन इंडिया (बीसीसीआई) में सुधार के लिए कई सुझाव उच्च न्यायालय को दिए हैं।
उन्होंने कहा कि देश में क्रिकेट को सही रास्ते पर लाने के लिए समिति ने सुझाव दिए हैं और उन्हें खुशी है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इनमें से कई पर सहमति जताई है।
उन्होंने कहा, “देश में क्रिकेट को धर्म की तरह माना जाता है। यह लोगों को एकजुट करता है। इसलिए इस खेल के प्रबंधन के हर पहलू में पारदर्शिता जरूरी है। मैच फिक्सिंग के मामलों की वजह से खेल की बदनामी हुई।”
–आईएएनएस
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