शहरों तथा गांवों में हर घर में किचन गार्डन (सब्जी की बाडी) लगाने की परंपरा को भी पुनर्जीवित करने की जरूरत है। समाज के सभी वर्गों में आवश्यक पोषण उपलब्ध कराने के लिए मोटे अनाजों, ज्वार, बाजरा के साथ-साथ कोदो कुटकी, रागी के उत्पादन और पशुपालन को प्रोत्साहित करना होगा।
यह विचार मंगलवार को पोषण पर केन्द्रित तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय कार्यशाला के दूसरे दिन विशेषज्ञों ने व्यक्त किये।
तकनीकी सत्र में विषय-विशेषज्ञों द्वारा यह तथ्य प्रमुखता से रखा गया कि पोषण संवेदी कृषि के व्यवहारिक क्रियान्वयन के लिए बीज और खाद की सहज उपलब्धता तथा उनका मूल्य निर्धारण किसान के हित में करना अति-आवश्यक होगा।
कार्यशाला में गेहूँ, चावल तथा मक्का की गुणवत्ता सुधार की आवश्यकता भी निरूपित की गई।
विशेषज्ञों का मत था कि पोषण में कमी का मुख्य कारण भोजन में प्रोटीन, आयरन तथा विटामिन-ए और जिंक की कमी का होना है। फोर्टिफाईड, गेहूँ, चावल तथा मक्का की उपलब्धता सुनिश्चित करना आवश्यक है।
कार्यशाला में नवजात शिशु के प्रथम 1000 दिवस पर उसकी उपयुक्त देखभाल के लिए प्रभावी नीति निर्धारण, पोषण जागरूकता के लिए चलाए जाने वाले अभियानों में परिवारों की महिलाओं के साथ-साथ पुरूषों की भागीदारी तथा शालेय पाठ्यक्रमों में पोषण साक्षरता को शामिल करने की आवश्यकता भी बताई गई।
कार्यशाला में पोषण संवेदी कृषि के लिए प्रभावी नीति निर्धारण और उपयुक्त प्रबंधन पर आयोजित विभिन्न सत्र में छत्तीसगढ़ योजना आयोग के सदस्य डॉ. डी.के. मारोठिया, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद अटारी लुधियाना के संचालक डॉ. राजवीर सिंह, अटारी जबलपुर के संचालक डॉ. अनुपम मिश्र ने भी विचार रखे।
इसके साथ ही पोषण संवेदनशील पर्यावरणीय कृषि विशेषज्ञ डॉ. लीना गुप्ता, आई.आई.टी. इन्दौर की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रीति शर्मा, महाराष्ट्र, गुजरात, हैदराबाद से आए कृषि वैज्ञानिकों ने भी अपने विचार साझा किए।
चावल की लुप्त होती किस्में, मांडू की इमली, ताड़ी-महुआ के व्यंजन : अमूमन हम उसी चावल के बारे में जानते हैं जो हमेशा इस्तेमाल करते हैं, लेकिन उसके अलावा भी चावल की अनेक जैविक किस्में होती हैं, जिनका रोजाना इस्तेमाल खाने में किया जा सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला के दौरान चावल की अनेक किस्मों के अलावा वन्य जीवन से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक फल, वनौषधि एवं पौष्टिक वस्तुओं के विषेश स्टाल लगाये गए हैं।
म.प्र. महिला वित्त एवं विकास निगम के अंतर्गत गठित स्व-सहायता समूहों एवं महिला स्व-सहायता समूहों, तेजस्विनी महिला महासंघों द्वारा आदिवासी क्षेत्रों में संचालित विभिन्न प्र-संस्करण इकाईयों में तैयार खाद्य सामग्रियाँ एवं औषधियाँ कार्यशाला के दौरान विक्रय के लिए उपलब्ध हैं।
इन सामग्रियों में कोदो चावल, कुटकी चावल, कोदो बर्फी, राई तेल, महुआ लड्डू रोस्टेड अलसी, सफेद मूसली, बेर का पाउडर, मुनगा फली आदि शामिल हैं। इनके बारे में पौष्टिक तत्वों पर जानकारियाँ भी यहाँ उपलब्ध हैं। मांडू की इमली, ताड़ी का गुड़, महुआ के व्यंजन, तेंदू, खिरनी भी यहां है।
यहाँ प्रतिदिन शाम 4 से 7 बजे के बीच जैम, सॉस, स्क्वेश बनाने का नि:शुल्क प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यह व्यवस्था भारत सरकार के खाद्य एवं पोषण आहार बोर्ड द्वारा की गई है।
कार्यशाला स्थल पर न्यूट्री थियेटर भी स्थापित किया गया है, जिसमें पोषण और स्वास्थ पर छोटी-छोटी फिल्मों के माध्यम से जानकारी दी जा रही है। प्रदर्शनी में आर्गेनिक एवं सेफ फार्मिंग, डबल फोर्टिफाइड साल्ट, नैचुरल कल्टिवेशन पर जानकारीपूर्ण स्टाल लगाए गए हैं। न्यूट्रीशन इंटरनेशल, ग्रीन कॉटन कांसैप्ट, डब्लू.एच.एच., जी.आई.जेड के स्टाल भी हैं।
अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला में परोसा गया परंपरागत भोजन : कार्यशाला में विशुद्ध परंपरागत तथा देशज व्यंजन आकर्षण का केन्द्र रहे। प्रथम दिवस महाराष्ट्र-खानदेशी व्यंजन जैसे पिठला, प्याज-केरी की सब्जी, पुरण पोली, कलने और रागी की रोटी, खानदेशी खिचड़ी तथा बंगाल, बिहार, उड़ीसा की थीम पर परोसा गया लिट्टी चोखा, सत्तू पराठा, कद्दू की खीर आकर्षण का केन्द्र रही।
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