काठमांडू, 21 नवंबर | नेपाल ने काठमांडू-निजगढ़ एक्सप्रेस वे निर्माण के लिए भारतीय कंपनियों के एक संघ के साथ किए गए सभी समझौता ज्ञापनों और लिए गए निर्णयों को रद्द करने का फैसला किया है। काठमांडू पोस्ट के अनुसार, नेपाल अपने बल पर परियोजना को मूर्त रूप देने की तैयारी कर रहा है।
76 किलोमीटर लंबा प्रस्तावित राजमार्ग साल 1991 से सरकार के ड्राइंग बोर्ड पर है।
भौतिक अवसंरचना एवं परिवहन मंत्री रमेश लेखक ने संसदीय वित्त और विकास समितियों से रविवार को कहा कि इंफ्रास्ट्रक्च र लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसिस (आईएल एंड एफएस) ट्रांसपोर्टेशन नेटवर्क, आईएफ एंड एफएस इंजीनियरिंग एंड कंस्ट्रक्शन और सूर्यवीर इंफ्रास्ट्रक्च र के भारतीय संघ को परियोजना सौंपने के प्रयास की पहले काफी आलोचना हुई थी।
उन्होंने कहा, “समझौतों और पूर्व में लिए गए निर्णयों को रद्द किए बिना, इस दिशा में आगे बढ़ने या अपने बल पर परियोजना को मूर्तरूप देने की कोई गुंजाइश नहीं है।”
भारतीय डेवलपर्स के साथ हुए समझौतों को रद्द करने के लिए लेखक का मंत्रालय मंत्रिमंडल में एक प्रस्ताव पेश करने की योजना बना रहा है।
मंत्रालय को संकाय द्वारा प्रस्तुत विस्तृत परियोजना रपट (डीपीआर) से संबंधित मुद्दों को हल करने के निर्देश दिए गए थे।
डेवलपर ने दावा किया था कि डीपीआर तैयार करने में उनके 50 से 60 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं।
मंत्रालय के सचिव धन बहादुर तमांग ने कहा कि मुद्दे को निपटाने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित की गई है।
साल 2014 में सुशील कुमार कोईराला के नेतृत्व में सरकार ने संघ को 100 अरब रुपये लागत वाली इस परियोजना का ठेका दिया था।
हालांकि, यातायात पर्याप्त नहीं होने की स्थिति में लाभ नहीं होने पर एक साल में 15 अरब रुपये की राजस्व गारंटी देने के लिए कोईराला सरकार की मंशा पर सवाल उठाए गए थे।
8 अक्टूबर, 2015 को सर्वोच्च न्यायालय ने भी परियोजना को ठंडे बस्ते में डालने के लिए एक अंतरिम आदेश जारी किए थे।
–आईएएनएस
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