नई दिल्ली, 10 अगस्त | केंद्र सरकार ने बुधवार को लोकसभा में कहा कि प्रशासनिक सेवाओं में लैटरल एंट्री तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों व अन्य गैर लाभकारी संगठनों में सरकारी कर्मचारियों के अस्थायी पदस्थापन से संबंधित मुद्दों पर राजनीतिक आम राय की जरूरत होगी। कांग्रेस सदस्य शशि थरूर के पूरक प्रश्न का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री व कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने प्रश्नकाल के दौरान कहा कि प्रशासनिक सेवा में लैटरल एंट्री की संभावना के अध्ययन के लिए एक समिति के गठन का कोई प्रस्ताव नहीं है।
मंत्री ने कहा कि ऐसे महत्वपूर्ण फैसले पर राजनीतिक आम राय की जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि सरकार उस नवीनतम स्वतंत्र सर्वेक्षण से निश्चित तौर पर संतुष्ट नहीं है, जिसने भारतीय नौकरशाहों के प्रदर्शन के आधार पर भारत को 76वें पायदान पर रखा है।
थरूर ने मंत्री से पूछा, “क्या आप इस 76वें पायदान से संतुष्ट हैं।”
कांग्रेस सदस्य ने दुख जताते हुए कहा कि ‘आत्मसंतोष’ नौकरशाही का एक बड़ा अवगुण है और दुर्भाग्यवश भारत इसका अपवाद नहीं है।
थरूर ने कहा, “आपने यह क्यों कहा कि प्रस्ताव नहीं मिला है? संसद के एक सदस्य के रूप में अब मैं एक प्रस्ताव कर रहा हूं।”
कांग्रेस सदस्य पर पलटवार करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सरकार ने कहां कहा है कि एशियाई अर्थव्यवस्थाओं द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में भारत को दिए गए 76वें स्थान से वह संतुष्ट हैं।
उन्होंने कहा कि यह सर्वेक्षण आधिकारिक तौर पर नहीं किया गया है और सीमित तौर पर 600 नमूनों पर आधारित है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पिछले कुछ वर्षो में भारत की रैकिंग में सराहनीय सुधार हुआ है।
सिंह ने कहा, “जब से हमारी सरकार सत्ता में आई है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर स्पष्ट तौर पर हम अधिकतम शासन लाने का प्रयास कर रहे हैं और सुनिश्चित किया है कि नौकरशाह अपना सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करने में सक्षम हैं।”
एक अन्य सवाल के जवाब मे सिंह ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों तथा गैर लाभकारी संगठनों में अस्थायी पदस्थापना का कोई सुझाव नहीं मिला है।
उन्होंने कहा कि ऐसे मुद्दों पर राजनीतिक आम राय की जरूरत होगी।
मंत्री ने कहा कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए अर्हता आयु समय-समय पर बढ़ाई गई है।
सिंह ने कहा, “अधिकांश लोगों को पता नहीं होगा कि यह 47 वर्ष तक है, जबकि सेवानिवृत्ति की आयु 50 वर्ष है।”
पिछले सप्ताह, थरूर के नेतृत्व में विदेश मामलों पर संसद की स्थायी समिति ने अपनी रपट में भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) में आने वाले लोगों की गुणवत्ता पर चिंता जताई थी।
समिति ने कहा था, “आईएफएस में आने वाले लोगों की गिरती गुणवत्ता को लेकर समिति चिंतित है। यह ऐसे वक्त में हो रहा है, जब सिविल सर्विस परीक्षा के प्रति लोगों के रुझान में बेहद बढ़ोतरी हुई है।” –आईएएनएस
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