राम मंदिर बनाने को लेकर किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। नरसिंम्हा राव के नेतृत्व पाली केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में शपथ पत्र दिया था कि अगर उस स्थान की खुदाई में मंदिर होने के प्रमाण मिलेंगे तो सरकार वहाँ मंदिर बनाने के लिए सहायता करेगी।
‘सर्वोच्च न्यायालय में पुरातत्व विभाग द्वारा दिए गए प्रमाणों से ये सिद्ध हो चुका है कि वहाँ मंदिर का अस्तित्व रहा है तो फिर वहाँ राम मंदिर बनाने को लेकर किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।’
यह मांग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश उपाख्य भैयाजी जोशी ने मुंबई के भायंदर में शुक्रवार को पत्रकारों से विस्तार से चर्चा करते हुए की।
केशव सृष्टि में तीन दिन तक चली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में विचार किए गए विभिन्न राष्ट्रीय मुद्दों पर सरकार्यवाह सुरेश उपाख्य भैयाजी जोशी ने कहा कि राम मंदिर का मुद्दा करोड़ों हिंदुओं की भावना से जुड़ा संवेदनशील मुद्दा है और इस पर न्यायालय को शीघ्र विचार करना चाहिए।
भैयाजी जोशी ने कहा कि अब जबकि
राम मंदिर के मुद्दे पर कानून व अध्यादेश के विकल्प पर भैयाजी ने कहा कि ये सरकार का अधिकार है कि वह इस पर कब विचार करे।
उन्होंने कहा कि हिंदू समाज ने राम मंदिर को लेकर विगत 30 वर्षों से वर्तमान आंदोलन चलाया है। हिंदू समाज की अपेक्षा है कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर बने और इससे जुड़ी सभी बाधाएँ दूर हों। लेकिन ये प्रतीक्षा अब लंबी हो चुकी है। 2010 में उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे को लेकर फैसला दिया था। 2011 से ये मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है।
भैयाजी जोशी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय की तीन जजों की पुनर्गठित बेंच जो इस मामले की सुनवाई कर रही थी उसने फिर से इसे लंबे समय के लिए टाल दिया गया। जब न्यायालय से ये पूछा गया कि इस मामले की सुनवाई कब होगी तो कहा गया कि हमारी अपनी प्राथमिकताएँ हैं।
कब सुनना यह न्यायालय का अपना अधिकार है लेकिन न्यायालय के इस जवाब से हिंदू समाज अपने आपको अपमानित महसूस कर रहा है और ये बात समस्त हिंदू समाज के लिए आश्चर्यजनक और वेदनापूर्ण है, भैयाजी जोशी ने कहा।
सर्वोच्च न्यायालय को इस मामले पर पुनर्विचार करना चाहिए। समाज को न्यायालय का सम्मान करना चाहिए और न्यायालय को भी सामान्य समाज की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।
‘राम मंदिर को लेकर हम सरकार पर कोई दबाव नहीं डाल रहे हैं बल्कि आपसी सहमति से इसका हल निकालने की बात कर रहे हैं। पूज्य संतों से बातचीत करनी चाहिए और हल निकालना चाहिए।’
उन्होंने कहा कि कोई भी सरकार सहमति और कानून दोनों के संतुलन से चलती है। सरकार द्वारा मंदिर को लेकर कानून नहीं बनाने को लेकर भैयाजी ने कहा कि बहुमत होने के बाद भी सरकार द्वारा कानून नहीं बनाना न्यायालय के प्रति उसके विश्वास को दर्शाता है, लेकिन न्यायालय भी इस मुद्दे की संवेदनशीलता को समझे और इस पर विचार करे।
शबरीमाला को लेकर उन्होंने कहा कि ये मुद्दा महिलाओं के मंदिर में प्रवेश देना होता तो हम उसका समर्थन करते है। हिंदू समाज में कोई भी पूजा पति और पत्नी के बगैर पूरी नहीं होती। हिंदू परंपरा में स्त्री और पुरुष में कोई भेदभाव नहीं होता है। लेकिन मंदिरों के अपने नियम होते हैं, कोई भी समाज मात्र अधिकारों पर नहीं बल्कि परंपराओं और मान्यताओँ पर चलता है।
भैयाजी जोशी ने कहा कि सभी मंदिरों में महिलाओं को समान प्रवेश मिले लेकिन जहाँ कुछ मंदिरों की विशिष्ट परंपराओं का प्रश्न है इसमें उन मंदिरों की व्यवस्था से जुड़े लोगों से चर्चा किए बगैर कोई निर्णय लिया जाता है तो ये उचित नहीं। ऐसे निर्णय देते वक्त न्यायालय ने इन विषयों से जुडे सभी घटकों को एकमत करने का प्रयास करना चाहिए।
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