मध्यप्रदेश में बाघों और गिद्धों के साथ-साथ अन्य वन्य प्राणियों की संख्या बढ़ाने के लिए अनेक कदम उठाये गये हैं और उनके परिणाम सामने आने लगे हैं।
लगभग समाप्त प्राय: हो चले गिद्ध या वलचर की आबादी को बढ़ाने के लिये मध्यप्रदेश में उल्लेखनीय प्रयास किये गये हैं। प्रदेश में पहली बार वर्ष में दो बार गिद्धों की गणना की गई। इसमें 35 जिलों में 7 प्रजातियों के 7 हजार से अधिक गिद्ध मिले। भोपाल के समीप केरवा में गिद्ध प्रजनन केन्द्र स्थापित किया गया है।
प्रदेश में बाघों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। आठ अनाथ बाघ शावकों को वन कर्मियों ने पाल कर, शिकार करना सिखाकर सफलता पूर्वक जंगल में वापस छोड़ा है।
बाघों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर भोपाल की सीमा पर स्थित मेंडोरा नामक स्थान पर ईआई सर्विलेंस सिस्टम लगाया गया है। स्थानीय ग्रामीणों में से 50-60 वालेंटियर का चयन कर उन्हें बाघ मित्र के रूप में प्रशिक्षित किया जा रहा है। इससे मनुष्य एवं बाघ की बेहतर सुरक्षा होगी।
अधिक घनत्व वाले क्षेत्रों से शाकाहारी वन्य प्राणियों का प्रतिस्थापन किया गया है। अब तक रातापानी, फेन अभयारण्य, कान्हा, सतपुड़ा और टाईगर रिजर्व में 1400 से अधिक चीतल पुन-र्स्थापना किये गये हैं।
बाघ शून्य हो चुके पन्ना में बाघों की पुन-र्स्थापना, मुकुंदपुर में सफेद बाघ सफारी, वन विहार और सतपुड़ा में कान्हा से बारहसिंघा की शिफ्टिंग, गौर और कृष्णमृग आदि का सफल स्थानांतरण, दुर्लभ और संकट ग्रस्त प्रजातियों की आबादी बढ़ाने की दिशा में किया गये प्रयास सफल हुए हैं।
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