प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है “लोकतंत्र में जब जनता जवाब मांगे, उससे पहले आपको स्वयं से अपनी जवाबदेही तय करनी होती है। आपको खुद को जवाब देना होता है।”
दिल्ली में 26 अलीपुर रोड पर निर्मित डॉ. अम्बेडकर राष्ट्रीय स्मारक का 13 अप्रैल को उद्घाटन करते हुए मोदी ने अपने संबोधन में कहा “लेकिन हमारे यहां पहले की सरकारों में इस तरह की जवाबदेही कम ही देखी गई। इस व्यवस्था को इस सरकार में बदल दिया गया है।” संभवत: आप में से कुछ लोग दिल्ली के 15 जनपथ पर बने अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर गए होंगे। 1992 में इस सेंटर का विचार सामने आया था। लेकिन 22 साल तक इसकी भी फाइल कहीं दबी रह गई।
उन्होंने कहा “आज बाबा साहेब की स्मृति में बने इस नेशनल मेमोरियल को राष्ट्र को समर्पित करते हुए, मैं खुद को भाग्यशाली महसूस कर रहा हूं। देश में बैसाखी भी मनाई जा रही है। ये हमारे अन्नदाता- हमारे किसान के परिश्रम को पूजने का दिन है। मैं देश को बैसाखी की भी बधाई देता हूं।
आज ही जलियांवाला बाग़ नरसंहार की बरसी भी है। 99 वर्ष पूर्व आजादी के दीवानों पर जिस तरह अंग्रेजी हुकूमत का कहर बरपा था, वो मानव इतिहास की सबसे हृदय विदारक घटनाओं में से एक है।
जलियांवाला बाग़ गोलीकांड में शहीद हर सेनानी को मैं नमन करता हूं।”
दिल्ली में कार्यभार संभालने के सालभर के भीतर ही अप्रैल 2015 में मैंने इस सेंटर का शिलान्यास किया और कुछ महीने पहले ही दिसंबर में इसका लोकार्पण भी किया। अब डॉक्टर अम्बेडकर के विचारों का प्रतीक ये स्टेट ऑफ द आर्ट इंटरनेशनल सेंटर दिल्ली की शान बना हुआ है।
प्रधानमंत्री ने भरोसा दिलाते हुए कहा कि मैं आज इस अवसर पर देश को आश्वस्त करना चाहता हूं कि जिस कानून को हमारी सरकार ने ही सख्त किया है, उस पर प्रभाव नहीं पड़ने दिया जाएगा। मेरा आग्रह है लोगों से, कांग्रेस और कांग्रेस कल्चर के सामने आत्मसमर्पण करने वाले दलों के जाल में न फंसे।
उन्होंने कहा “इस सरकार में कानून के माध्यम से सामाजिक संतुलन को स्थापित करने का भी निरंतर प्रयास किया गया है।” ये हमारी ही सरकार है जिसने साल 2015 में दलितों पर होने वाले अत्याचार को रोकने के लिए कानून को और सख्त किया था।
दलितों पर होने वाले अत्याचारों की लिस्ट को 22 अलग-अलग अपराधों से बढ़ाकर 47 कर दिया था। यानि अब दलितों के खिलाफ 47 अलग-अलग अपराधों पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। इस कानून का कड़ाई से पालन हो, इसके लिए, हमारी सरकार ने पहले की सरकार के मुकाबले दोगुने से ज्यादा राशि खर्च की। जब माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को इस अधिनियम से जुड़ा फैसला दिया, तो सिर्फ 12 दिन में पुनर्विचार याचिका भी दाखिल की गई।
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