राज्य संग्रहालय श्यामला हिल्स, भोपाल में शिवपुत्र कार्तिकेय- गणेश पर केन्द्रित सात दिवसीय राज्य स्तरीय छायाचित्र प्रदर्शनी का शुभारंभ 21 नवम्बर को होगा।
पुरातत्व आयुक्त अनुपम राजन ने बताया कि शिवपुत्र- कार्तिकेय- गणेश की प्रदर्शनी में विश्व स्तर की चुनिंदा 74 प्रतिमाओं के छायाचित्र प्रदर्शित किये जायेंगे।
विश्व धरोहर सप्ताह 19 से 25 नवम्बर के बीच मध्यप्रदेश के अन्य संग्रहालयों में छायाचित्र प्रदर्शनी और चित्रकला प्रतियोगिता आयोजित की जा रही हैं। पुरा-सम्पदा की सुरक्षा, रख-रखाव और संवर्धन के प्रति आमजन को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रदेश भर के कई संग्रहालयों में विविध कार्यक्रम किये जा रहे हैं। राज्य स्तरीय प्रदर्शनी 21 से 28 नवम्बर तक सुबह 10.30 बजे से 5.30 बजे तक आमजन के लिए नि:शुल्क खुली रहेगी।
कार्तिकेय- गणेश
भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय हैं। कुमार, स्कन्द, सुब्रमण्यम्, सन्मुख और मुरूगन नाम से भी कार्तिकेय को जाना जाता है। मुरूगन नाम दक्षिण भारत में प्रचलित है। बुराइयों को नष्ट करने वाले रक्षक एवं देवताओं की ओर से सेना नायक के रूप में भूमिका निभाने वाले कुमार कार्तिकेय या मुरूगन लोकप्रिय हिन्दू देव हैं और इनके अधिकतर भक्त तमिल हैं। इनके 06 प्रसिद्ध मंदिर तमिलनाडु में स्थित हैं। तमिल इन्हें ‘तमीज कादुवुल’ यानि कि तमिलों के देवता कहकर सम्बोधित करते हैं। इस राज्य के रक्षक देव भी हैं।
भारत के बाहर मलेशिया की राजधानी कुआलालम्पुर में ऐसी गुफा में श्री सुब्रमण्यम् देव स्थान मंदिर है। यह मंदिर मुरूगन (कार्तिकेय) की विशाल प्रतिमा के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यह प्रतिमा 42.7 मीटर ऊँची है। यह मंदिर भारत के बाहर स्थित सबसे अधिक हिन्दू मंदिरों में से एक माना जाता है।
गणेश, शिव और पार्वती के छोटे पुत्र हैं। इनका वाहन मूषक है। गणों के स्वामी होने के कारण इनका एक नाम ‘गणपति’ भी है। ज्योतिष में इनको ‘केतु का देवता’ भी माना जाता है। हाथी जैसा सिर होने के कारण इन्हें ‘गजानन’ भी कहते हैं। श्री गणेश ‘गणपति’ और ‘विनायक’ के रूप में जाने जाते हैं जिनकी सर्वत्र पूजा की जाती है।
गणेश जी की प्रतिमाओं का निर्माण भारत,नेपाल एवं इंडोनेशिया आदि देशा में होता आया है। हिन्दू संस्कृति में मान्य परम्पराओं में जब कभी किसी के यहाँ शुभ कार्य होते हैं उसके प्रारंभ होने के पहले ‘गणेश जी’ की आराधना की जाती है। गणपति आदिदेव हैं जिन्होंने हर युग में अवतार लिया। इनकी शारीरिक संरचना से भी विशिष्ट एवं गहरा अर्थ निहित है। प्राचीन ग्रन्थों एवं प्रतिमा विज्ञान में इनके जन्म के संबंध में अनेक कथाओं के अलावा प्रतिमा निर्माण के दिशा-निर्देश हैं।
चौथी सदी एवं पांचवी सदी ई. से इनकी प्रतिमाएँ प्रकाश में आयी हैं। नौंवी सदी से 12 वीं सदी तक गणेश की अधिकतर प्रतिमाओं की विभिन्न रूपों से रचना की जाने लगी। नृत्यरत गणेश की मनोहारी प्रतिमाएँ मंदिर स्थापत्य के अलावा देश- विदेश के संग्रहालयों में बहुतायत उपलब्ध हैं। कार्तिकेय की प्रतिमाएँ के प्रमुख प्रदर्शन मथुरा क्षेत्र की दूसरी सदी ई. की प्रतिमा, चौथी सदी की गजेन्द्रघाट मंदसौर की प्रतिमा वर्तमान में राज्य संग्रहालय में प्रदर्शित हैं। कार्तिकेय – गणेश की इन सभी प्रतिमाओं को राज्य स्तरीय प्रदर्शनी में रखा गया है।
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