पहले ही सीजन में पालर पानी से भरा कुंड तो खुशियां हुई ओवरफ्लो

जयपुर, 12 अगस्त (जस)। अपनी जिंदगी में ‘कुण किण रै घरै बाजरै री बोरी गिरावै है’ सुनने वाले और दिनभर जी-तोड  मेहनत कर चंद रुपए हासिल करने वाले भींवाराम ने कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि सरकार इस तरह मेहरबान होकर किसी गरीब को लाखों रुपए का फायदा भी सीधे-सीधे पहुंचा सकती है। ऎसे में मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान में बने उसके पालर पानी के कुंड (टांके) ने उसके परिवार की खुशियाें को ओवरफ्लो कर दिया है।

निर्माण के बाद पहले ही सीजन में ऊपर तक भर आई कुंड को देखकर उसकी बीवी किशनी और बेटे नरेंद्र की खुशी का ठिकाना ही नहीं है। बार-बार कुंड पर जाने व उसमें बाल्टी डुबोने से उसमें गंदगी भी नहीं हो, इसके लिए उन्होंने कुंड के बाहर ही हैंडपंप लगवा लिया है। जब भी पानी की जरूरत होती है, वे हैंडपंप चलाकर पानी भर लेते हैं। जी हां, सीकर जिले की लक्ष्मणगढ पंचायत समिति के जेवली ग्राम के वाशिंदे भींवाराम को मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान का सीधे-सीधे यह लाभ मिला है।

एक लाख चार हजार रुपए की लागत से बने कुंड ने उसकी जिंदगी के फ्लोराइड भरे कड़वे घूंट को बरसात के मीठे पालर पानी में बदल दिया है। भींवाराम की पत्नी किशनीदेवी ने बताया, ’हम जेवली गांव में स्थित अपने खेत में ढाणी बनाकर रहते हैं। पीने के लिए अब तक फ्लोराइड व अन्य हानिकारक तत्वों से भरा पानी ही नसीब होता था। उस पानी से दांतों व हड्डियों में होने वाली बीमारियों का खतरा हमेशा बना रहता था। लेकिन, कोई उपाय भी नहीं था। आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि खुद अपने खेत में कुंड बनवा सकें। ऎसे में राज्य सरकार के मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान ने हमारी खुशियों की राह संवारते हुए हमारी मुश्किलों को आसान करने का काम किया।’

एमजेएसए से लाभान्वित होने वाला भींवाराम अकेला नहीं, सीकर जिला कलक्टर कुंज बिहारी गुप्ता के मुताबिक जिले में करीब 885 लाख रुपए की लागत से ऎसे 851 पेयजल टांके बनाए गए हैं। प्रत्येक कुंड की भराव क्षमता 25 हजार लीटर है। गुप्ता बताते हैं कि खेतों में बने इन टांकोंं से न केवल संबंधित किसान को फायदा मिल रहा है, अपितु जरूरत के मुताबिक आसपास के दर्जनों किसान भी इससे लाभान्वित होते हैं और इनका पालर पानी पीते हैं। गुप्ता कहते हैं कि शेखावाटी में पालर पानी के कुंड बनाने की लंबी परम्परा रही है और सदियों से लोग बरसाती पानी का संरक्षण इनके जरिए करते आ रहे हैं लेकिन कुछ निर्धनता और कुछ जागरुकता के अभाव के चलते सब लोग यह टांके नहीं बना पाते हैं। ऎसे में एमजेएसए में बने टांकों से जल संरक्षण के प्रति जागरुकता भी बढ़ी है।