राजीव प्रताप रूड़ी===
भारत की आजादी के पिछले 70 वर्षों से हमारे देश में स्वतंत्रता की परिभाषा लगातार यही रही है कि हमने अपने देश को ब्रिटिश राज से मुक्त कराया है और देश को आर्थिक रूप से सक्षम बनाया है। हमने लगातार प्रगति और विकास की यात्रा को आगे बढ़ाया है। देश ने इन वर्षों के दौरान निजीकरण, आत्म निर्भरता और वैश्वीकरण की क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य किया है। पिछले दो वर्षों के शासन के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की भूमिका में नाटकीय परिवर्तन हुआ है और वह वैश्विक आर्थिक शक्ति के ऊंचे स्थान की ओर अग्रसर हो गया है।
तेजी से हुई इस आर्थिक प्रगति से कुशल श्रमिकों की मांग बढ़ी है और इससे देश में कुशल कार्यबल की कमी भी सामने आई है। इस पैमाने की चुनौती से अब हमारे सामने जो मुद्दा है वह यह है कि हमें ऐसे नए आजाद भारत का सृजन करने का अवसर प्राप्त हुआ, जहां व्यावसयिक कौशल आप को अपना जीवन और सम्मान चुनने की आजादी और अधिकार देगा, जिसकी आप ने हमेशा इच्छा की है।
अब वह समय आ गया है, जहां भारत को कौशल विकास पर ध्यान केन्द्रित करके खामोश क्रांति लाने के बारे में गंभीरता से सोचना पड़ेगा। 2035 में जनसांख्यिकी प्रभाव केवल एक प्रतिशत बढ़ेगा या सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) एक प्रतिशत कम होगा। लेकिन कौशल प्रशिक्षण में महत्वपूर्ण सुधार लाने के बाद ही भारत के जीडीपी स्तर में 2035 में तीन प्रतिशत बढ़ोतरी की जा सकती है। उत्पादता में सुधार लाने के लिए कौशल विकास सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। उत्पादता से ही जीवन स्तर में सुधार और विकास आएगा। जब हम जीवन स्तर सुधारने के बारे में बातचीत करते हैं तो इसका गरीब लोगों के रोजगार और विकास के अवसरों को अधिक से अधिक करने, सतत उद्यम विकास के लिए माहौल बनाने, खुला सामाजिक संवाद शुरू करने के अवसरों को अधिक से अधिक बनाने पर प्रभाव डालता है। ऐसा माहौल जिसमें सभी के लिए सम्मान हो और प्रारंभिक शिक्षण, स्वास्थ्य और वस्तुगत बुनियादी ढांचे में योजनाबद्ध निवेश हो।
सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण (वीईटी) पहल अधिक ध्यान केन्द्रित, परिणामजन्य, उद्योग की जरूरत के अनुकूल और रोजगार तथा नौकरियों से जुड़ी हुई है। क्षमता निर्माण और गुणवत्ता मानकों की ओर अधिक ध्यान दिया जाने लगा है। उद्योग न केवल अपने पाठ्यक्रमों का विकास और मानक निर्धारित करने में अपनी भागीदारी के माध्यम से कौशल विकास की कहानी को आकार देने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं, बल्कि आकलन और प्रमाणीकरण प्रक्रियाओं में भी शामिल हैं। इसके अलावा कौशल प्रशिक्षण पहलों के लिए वित्तीय पहुंच बढ़ाने के भी उपाए किए गए हैं।
भारत में कौशल विकास कार्यक्रम का वर्तमान लक्ष्य बहुत महत्वाकांक्षी है। 2015-16 में हमने देश में 1.04 करोड़ युवाओं को प्रशिक्षित किया, जो पिछले वर्ष की उपलब्धि की तुलना में 37 प्रतिशत अधिक है। प्रशिक्षु अधिनियम में किए गए व्यापक सुधारों से स्थिति में परिवर्तन हुआ है और ऐसा एक सबसे सफल कौशल विकास योजना से ही हो सकता है। आईटीआई पारिस्थितिकी तंत्र में आमूलचूल सुधार से विविध ट्रेडों में सभी के लिए अवसर पैदा होंगे, क्योंकि देश में इन ट्रेडों में मानव संसाधन अपेक्षित है। लेकिन इन संख्याओं का वास्तविक विश्लेषण या ब्रेक अप उस प्रक्रिया में निहित है जब हम इनका जिला स्तर पर मानचित्रण करते हैं। क्योंकि जब हम किसी जिले की बात करते है तो पता चलता है कि वहां पर किस प्रकार के कौशल की जरूरत है। वहां हमें पता चलेगा कि वहां ऐसे अनेक रोजगार उपलब्ध हैं जिन्हें हमने अपने कौशल कार्यक्रम में शामिल नहीं किया है। इसी प्रकार जल ऊर्जा और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे नए क्षेत्र भी सामने आ रहे हैं। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था बढ़ती है उसमें आप को नए किस्म के रोजगार दिखाई देने लगते हैं। इसलिए ऐसे रोजगारों की पर्याप्त मांग है और इस मांग को पूरा करने के कई माध्यम हैं। इसके लिए हमे केवल यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि आपूर्ति मांग अनुरूप हो। लेकिन समस्या इतनी सरल नहीं है जितनी दिखाई देती है। इसकी अपनी जटिलताएं और गतिशीलता है और यह आवश्यक है कि हम इन बढ़ती हुई मानव संसाधन जरूरतों से स्थानीय स्तर से ही निपटने के लिए सामूहिक प्रयास करें।
दूसरी ओर युवाओं को उपलब्ध कराई गई नौकरियों को भरने में युवाओं की अक्षमता के अनेक कारण है, जिनमें भौगोलिक गतिशीलता तथा कम वेतन शामिल है जो उनकी जरूरतों को पूरा करने में पर्याप्त नहीं है। कुल मिलाकर यह एक बहुत बड़ा काम है।
लेकिन हम ऐसे देश के नागरिक है जो ‘’मेक इन इंडिया’’ और ‘’डिजिटल इंडिया’’ जैसी अपनी पहलों से वैश्विक बाजार में स्वयं को एक बड़ा ब्रांड बना रहा है। लेकिन हमें इस तथ्य को स्वीकर करना होगा कि स्किल, रि-स्किल और अप-स्किल अपनाने के अलावा हमारे सामने कोई अन्य रास्ता नहीं है। इन्हें अपनाकर ही हम विश्व में नवाचार के साथ अपने आप को खड़ा कर सकते है फिर चाहे वह कौशल सेट हो, जो तकनीकी माध्यमों की मदद से किसान की उत्पादनता बढ़ा देता हो या विश्व में नवाचार का केन्द्र होने के कारण मेकट्रोनिक्स और रोबोटिक्स के क्षेत्र में नवीनतम तकनीक का अनुसरण कर रहा हो।
एक युवा मन को न केवल सपने देखने चाहिए, बल्कि उन्हें साकार करने के लिए कार्य भी करना पड़ता है। हमारे देश के युवाओं को अपनी इस बौद्धिक स्वतंत्रता की ओर कार्य करना होगा, तभी कौशल उनकी सफलता का उपकरण बन सकता है। इसके बाद ही हम यह सोच सकते हैं कि
मैं कर सकता हूं,
मैं करूंगा।
(लेखक राजीव प्रताप रूडी, भारत सरकार में कौशल विकास और उद्यमिता राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हैं।)
फोटो साभार: एमएसडीई डॉट जीओवी डॉट आईएन
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