रियो डी जनेरियो, 16 अगस्त | ब्राजील की मेजबानी में चल रहे ओलम्पिक खेलों में अब तक के अपने सबसे बड़े दल के साथ उतरे भारत को दो सप्ताह बाद भी पहले पदक का इंतजार है और तमाम धुरंधरों से मिली निराशा के बाद अब कुश्ती में नरसिंह पंचम यादव और योगेश्वर दत्त पर पदक की उम्मीदें आकर टिक गई हैं। पांच अगस्त से शुरू हुए खेलों के महाकुंभ के 17 दिन बीत चुके हैं और भारत के 100 से भी बड़े खिलाड़ियों के दल के हाथ अब तक एक भी पदक नहीं लगा है।
रियो ओलम्पिक में कुश्ती की स्पर्धाएं शुरू हो चुकी हैं और अब इन दोनों पहलवानों पर सवा करोड़ भारतीयों की निगाहें टिक गई हैं।
भारत ने लंदन ओलम्पिक में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए छह पदक हासिल किए थे, जिसमें कुश्ती से दो पदक थे। निश्चित तौर पर इस बार भारतीय पहलवान पिछले प्रदर्शन में सुधार करना चाहेंगे।
हालांकि रियो ओलम्पिक में आए भारतीय कुश्ती दल के लिए रियो पहुंचने तक का सफर विवादों से भरा रहा। नरसिंह दो बार ओलम्पिक पदक विजेता सुशील कुमार से अदालती जंग में जीतकर रियो पहुंचे हैं और आखिरी समय में उन्हें डोपिंग के संगीन आरोपों का भी सामना करना पड़ा।
नरसिंह पर एक बार तो भारत की राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (नाडा) ने डोपिंग के कारण प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन नाटकीय अंदाज में नरसिंह को साजिश का शिकार पाया गया और उन्हें रियो जाने की इजाजत मिल गई।
नरसिंह फ्रीस्टाइल कुश्ती के 74 किलोग्राम भारवर्ग में भारत की दावेदारी पेश करेंगे। हालांकि इस भारवर्ग में मौजूदा चैम्पियन जॉर्डन बरो को स्वर्ण का प्रबल दावेदार माना जा रहा है और वह दुनिया के किसी भी पहलवान के सामने सबसे बड़ी चुनौती माने जा रहे हैं।
नरसिंह के बाद लंदन में कांस्य पदक जीत चुके योगेश्वर से काफी उम्मीदें हैं। योगेश्वर लंदन ओलम्पिक में 60 किलोग्राम भारवर्ग में यह पदक जीते थे, लेकिन इस बार उन्हें 65 किलोग्राम भारवर्ग में खेलना है.
योगेश्वर रियो ओलम्पिक के आखिरी दिन 21 अगस्त को मैट पर उतरेंगे और उम्मीद है कि वह भारत के लिए रियो का सफल समापन करेंगे।
फ्रीस्टाइल कुश्ती के 57 किलोग्राम भारवर्ग में एक अन्य भारतीय दावेदार संदीप तोमर का यह पहला ओलम्पिक होगा और वह निश्चित तौर पर अपना सर्वश्रेष्ठ देना चाहेंगे।
महिला पहलवानों की बात करें तो विनेश फोगट और बबिता कुमारी और साक्षी मलिक तीनों के लिए ही यह पहला ओलम्पिक है।
सगी बहनें विनेश और बबिता ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों-2014 में स्वर्ण पदक विजेता हैं, हालांकि ओलम्पिक में उनकी राह कहीं कठिन होगी। विनेश की अपेक्षा बबिता के पास हालांकि अधिक अनुभव है और वह विश्व चैम्पियनशिप-2012 में कांस्य पदक जीत चुकी हैं।
साक्षी भी ग्लासगो राष्ट्रमंल में रजत पदक जीतने में सफल रही थीं, हालांकि अनुभव के मामले में वह काफी पीछे हैं। उनके पास अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रमंडल और एशियन चैम्पियनशिप में ही खेलने का अनुभव है।
–आईएएनएस
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