Kavi Gop

रीतिकालीन कृष्ण भक्ति काव्य परंपरा के कवि गोपाल भट्ट ‘गोप’ 

— बृजेन्द्र रेही —-

ब्रज भाषा साहित्य के मूर्धन्य कवि गोप का जन्म सन् 1837 के आसपास गोकुल में हुआ था। उनका देहांत 97 साल की आयु में सन् 1934 में कोटा में हुआ।

उनका पूरा नाम रेही गोपाल भट्ट (Gopal Bhatt) था और वे अपने समय में कवि गोप (Kavi Gop) के नाम से जाने जाते थे। वे जाति से तैलंग (Tailang)  ब्राह्मण थे और पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय में दीक्षित थे। उनके पिता का नाम श्री बालमुकुन्द भट्ट और उनकी माता श्रीमती कमला देवी थीं। मूलतः गोप के पूर्वज कालांतर में दक्षिण भारत से उत्तर भारत में आगए थे और वेल्लनाटीय ब्राह्मण कहलाते थे।

कवि गोप (Kavi Gop) आयुर्वेद, ज्योतिष और रमल शास्त्र के विद्वान् भी थे। उन्हें हिन्दी साहित्य के रीतिकाल (Ritikaal) या श्रृंगार काल’ के अंतिम दशक और आधुनिक काल के शुरुआती दौर का कवि भी कहा जा सकता है।

कवि गोप (Kavi Gop) रीतिकालीन कृष्ण काव्य  की परंपरा के कवि थे। उन्होंने अष्टछाप के कवियों के अलावा अन्य कवियों यथा जयदेव, विद्यापति, बिहारी, केशव, मतीराम, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र आदि की समृद्ध काव्य परंपरा को अपने सृजन से महत्वपूर्ण योगदान दिया किन्तु उनके साहित्य का मूल्यांकन आज तक नहीं किया जा सका।

वल्लभ संप्रदाय की पुष्टि भक्ति परंपरा जब सात्त्विक से मधुर भक्ति की ओर चली गई तो काव्य की भाषा भी राग-भोग एवं विलास की अभिव्यक्ति बन गया। राधा और कृष्ण के संयोग और वियोग को रति और श्रृंगार के भावों से तत्कालीन काव्य साहित्य का भंडार समृद्ध होता रहा।

काव्य विलास की इस परंपरा को आगे बढ़ाने में तत्कालीन रचनाकार कभी पीछे नहीं रहे। यह उस कालके  राज्याश्रय का प्रभाव भी था कि आचार्य वल्लभ की सादगी पूर्ण पुष्टि सेवा मंदिरों के विशाल और सुसज्जित भवनों और हवेलियों में बदल जाने और बाद के आचार्यों की जीवन शैली में आए राजसी बदलाव ने कवियों और रचनाकारों को पूरी तरह प्रभावित किया।

कवि गोप (Kavi Gop) उसी श्रृंगार और रीति परंपरा के कवि थे। अभी तक उनके जितने ग्रंथ और फुटकर रचनाएं देखने को मिली है, उससे यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है। हालांकि उनकी रचनाओं की टीका और व्याख्या करना अभी शेष है।

अभी तक विद्वानों के समक्ष उनकी रचनाएँ और ग्रंथ आए नहीं हैं जिन पर शोध और अनुसंधान किया जाता। इसलिए मेरा यह भी मानना है कि अभी किसी निष्कर्ष पर मुझे नहीं पहुँचना चाहिए किन्तु उनके साहित्य का संक्षिप्त रसास्वादन करने से जो मुझे आभास हुआ वही मैंने अभिव्यक्त किया है।

एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि 18वीं और 19वीं शताब्दी के हिंदी भाषी प्रांतों के कवियों पर फ़ारसी, खड़ी बोली (तत्कालीन हिन्दी ) और कहीं-कहीं उर्दू का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई होता है।

यह भी उसी दरबारी या राज्याश्रयी संस्कृति का परिणाम है जब मुगल साम्राज्य के अधीन अपना-अपना क्षेत्रीय राज्य संचालन करने वाले राजे-महाराजे और मंदिरों के पीठाधीश अपनी शासन व्यवस्था को कला और काव्य के श्रृंगार से सुशोभित कर रहे थे।

कवि गोप (Kavi Gop) श्रृंगार रस की संयोग और वियोग परंपरा के कवि थे। उन्होंने ब्रज भाषा में लिखे आयुर्वेद के महत्वपूर्ण ग्रंथ ‘काम कल्पतरू’ में समापन करते हुए जो परिचय दिया है वह इसप्रकार है:-

गोकुलस्थ तैलंग द्विज विल्वनाट कवि गोप। नंदन बालमुकुन्द को विनय करत प्रणरोप।।

यह ग्रंथ उन्होंने सन् 1891 में पूरा किया था, तब तक वे कवि और वैद्य के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुके थे। ब्रज भाषा काव्य में यह ग्रंथ उन्होंने राजस्थान के एक रियासत के नरेश मेघसिंह के अनुरोध पर लिखा था।

यह हिन्दी साहित्य का वह काल खण्ड भी था जब काव्य की भाषा ब्रज थी किन्तु गद्य लेखन खड़ी बोली में भी शुरू हो गया था।
वे अपने जीवन में कभी एक स्थान पर टिक कर नहीं रहे। पहले गोकुल, फिर राजस्थान में बेगू और फिर नाथद्वारा को उन्होंने अपना कार्य क्षेत्र बनाया।

जीवन के अंतिम समय में वह कोटा आ गए थे, जहाँ उनके पुत्र श्री श्रीकृष्ण लाल भट्ट कोटा में महाराजा के यहाँ मुंशी का काम करते थे।
कवि गोप की काव्य रचनाओं में अनेक प्रकार की नायिकाओं का वर्णन मिलता है। उनके काव्य-साहित्य के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि उन्होंने संस्कृत साहित्य का भी गहन अध्ययन किया था।

उनकी काव्य रचनाओं में नायिकाओं का वर्णन रस-सिद्धांत और नाट्य साहित्य की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। याद रखने की बात यह है कि संस्कृत साहित्य के सृजन की परंपरा ईसा से लगभग 1500 साल पहले से शुरू हो गई थी।

जहाँ तक संस्कृत और ब्रज भाषा साहित्य के नाटको और काव्य की बात है तो उनमें नायक और नायिकाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है।

इसे समझने के लिए भरतमुनि के नाट्य शास्त्र के अलावा वात्स्यायन के कामसूत्र, कालिदास की रचनाओं अभिज्ञानशाकुन्तलम् , मेघदूत, कुमारसंभव, ऋतुसंहार आदि से भी समझा जा सकता है।

इसके अलावा दण्डी, वामन, आनन्दवर्द्धन, कुंतक, अभिनवगुप्त, रुद्रट, शूद्रक, बाणभट्ट, बिहारी, केशव, जयदेव, पद्माकर जैसे अनेक नाट्यकारों, आचार्यों, काव्यशास्त्रियों और विद्वानों की रचनाएँ भी नायक-नायिकाओं को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।

यहाँ संस्कृत एवं ब्रज भाषा साहित्य के कतिपय किन्तु कालजयी कवियों और नाटककारों की चर्चा इसलिए की है ताकि शोधकर्त्ता कवि गोप का मूल्यांकन कर सकें।

सामान्यतः हिन्दी साहित्य में अष्ट-नायिकाओं का वर्णन किया गया है लेकिन ब्रजभाषा और संस्कृत साहित्य में नायिकाओं के मनोभावों के संदर्भ में  विस्तृत व्याख्या की गई है।

नायिकाएँ यानी वे स्त्रियाँ जो आयु, रूप, रंग, स्वभाव, गुण और कर्म के अनुसार अलग-अलग व्यवहार और आचरण करती हांे।
अगर यह कहा जाए कि नायिकाएँ वे स्त्रियाँ है जो अपने प्रेमियों और उनमें अनुरक्ति रखने वाले पुरुषों के रागात्मक संबंधों की सजीव अभिव्यक्तियाँ हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

तो अब कवि गोप (Kavi Gop) की कुछ रचनाओं का रसास्वादन करते लेते हैं:

उनका एक कवित्त है:

एक दीन अधीन करे बतिया, जिनकी कटि छीन छलामे करें

इक दोस धरे अवसोस करें, एक रोष व्है नैन ललामे करें।

कवि गोप जुटे जुग जंघन को,  उर दे भुज शाम सलामे करें

निज अम्बर मांगे कदम्ब तरे, ब्रज वामे भुलामे कलामे करें।।

उनका एक सवैया है
ए रजनी रति रंग अचानक  आए हैं पांइ चलाइ अंधेरे

की वह कुंज लतान को मंडप लौ विरहा जहाँ आजु सवेरे

कोन के नेन चकोर पियेंगे  पियूष हिं पूछत चंद उजेरे।

पूछिले चितकी चातुरि जेंलगि ठाड़ेहैं आनन्द आंगन तेरे।

 

कवि गोप ने आठ प्रकार की गर्विता नायिकाएं बताई हैं।

आठ प्रकार की गर्विता लक्षण

प्रेम धर्म धन बुद्धि सुख लज्जा यौवन रूप,

होय गर्व जाको हिये वोहि गर्विता अनूप।।

गर्विता मुग्धा स्वकीया

लखा लखी कर करहुं, किन दृग आंचल संचार

पन हिं मिश्रिम हो हि कर, कर करि नहिं कर तार ।।

प्रेम गर्विता प्रौढ़ा

पानन पान लगाई री कबहुं न मों विन पांइ

चंद्रक चंदन चंद्र हैं का विध अंग लगाई।।

सुकुमार गर्विता परिकीया मुग्धा

दृग मीचत ब्रज चंद जुग, उगरि दई अपार

तिन संग विहर सखीन मधि छिपहों कौन प्रकार।।

और अंत कवि अपने बारे में कहते हुए भी संकोच नहीं करता है। यह दोहा पढ़ें :

नीकी फीकी कहन  को सुनो मान दे कान।

कवि गुपाल बिन जगत में पैदा नाहिन आन।।
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(कवि गोप के साहित्य के संबंध में लेखक को bbrehi@gmail.com पर  ईमेल करके जानकारी प्राप्त की जा सकती है।)