यह संयोग की बात है कि आज जिस विचारधारा को समस्त भारत ने मुख्यधारा बनाना पसंद किया है, उसके दो प्रमुख प्रवर्तकों की यह जन्मशती वर्ष है। यह अंत्योदय के प्रवर्तक पंडित दीनदयाल उपाध्याय और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ में सहकारिता की नींव को बुंलद करने वाले मनीषी लक्ष्मण माधवराव इनामदार के जन्म का सौवां वर्ष है।
लक्ष्मण माधवराव इनामदार का जन्म 21 सितंबर,1917 को महाराष्ट्र के सतारा जिला में खटाव गांव में हुआ। खटाव पुणे से 130 किलोमीटर दक्षिण है। भारतीय पंचाग के अनुसार इनकी जन्म की तिथि को ऋषिपंचमी थी। अपने ऋषि तत्व को वह आजीवन परिमार्जित करते रहे। यह इनके चरित्र से सदैव मेल खाता रहा।
इनामदार उन शख्सियतों में शामिल हैं जिन्होने राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ को सहकार का मंत्र दिया था। अस्सी के दशक में जब राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने सहकारी आंदोलन में शामिल होने के लिए “सहकार भारती” नामक प्रकल्प की शुरुआत की तो लक्ष्मणराव इनामदार उसके पहले महासचिव बनाए गए। कर्मठ व्यक्तित्व के धनी इनामदारजी के व्यक्तित्व से प्रभावित विचारधारा पर चलकर अब न्यू इंडिया के निर्माण का संकल्प लिया जा रहा है।
स्कूली पढ़ाई के दौरान ही लक्ष्मणराव इनामदार राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के संस्थापक डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार के संपर्क में आए। हेडगेवार से दीक्षा लेकर संघ कार्य में जीवन को समर्पित कर दिया। उन्होंने वकालत की पढ़ाई की थी। इसलिए राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के कार्यकर्ताओं में वकील साहब के संबोधन से जाने जाते थे।
जिस राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के लिए उन्होंने जीवन समर्पित कर दिया, उसमें आने का निर्णय उन्होंने बहुत सोच समझ कर लिया।। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के विस्तार के क्रम में इसके संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार स्वंय सतारा पहुंचे थे। उनसे वकील साहब का साक्षात्कार दिलचस्प है। विदर्भ और पुणे आदि इलाकों में संघ की शाखाएं भली प्रकार से काम करने लगी तो डॉक्टर साहब सन् 1935 में पश्चिम महाराष्ट्र के दौरे पर थे। सतारा के सुप्रसिद्ध वकील दादा साहब करंदीकर के घर उनका प्रवास था।
उस रात डॉक्टर साहब ने राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के ध्येय पर लंबा व्याख्यान दिया। सहभागी वकील साहब पूरी तन्मयता से बातों को सुनते रहे। उसके बाद वकील साहब के समक्ष संघ के स्वंयसेवक बनने की शपथ लेने का प्रस्ताव आया। उन्होंने प्रथमदृष्टया इंकार कर दिया। विनम्र भाव से फैसले के लिए समय की मांग की । डॉक्टर साहब भौंचक नहीं थे। उन्होंने वकील साहब के सोच समझकर फैसला लेने की इस प्रवृति की सराहना की। शीघ्र स्वीकृति नहीं देने का वकील साहब के स्वभाव का हिस्सा था।
वकील साहब के साथी गोपालदास गुर्जर लिखते हैं कि मार्च 1935 की उस रात वकील साहब ने डॉक्टर साहब के व्याख्यान पर खूब विचार किया। और फिर दूसरे दिन डॉ साहब के पास जाकर शपथ का समय तय करने का आग्रह किया। सतारा में भव्य शपथग्रहण समारोह में वकील साहब साथियों के साथ स्वंयसेवक बने।
वकील साहब के संपर्क की कहानी पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सेतुबंध के नाम से सन् 2000 में पुस्तक लिखी है। प्रधानमंत्री को जब कभी मौका लगा है, वह बताने से नहीं चूके हैं कि वकील साहब की दीनचर्या और व्यक्तित्व उनको सदा प्रभावित करता रहा है। ऐसे दिग्दर्शक की प्रेरक पाठशाला से निकले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चरित्र का दृढ दिखना असहज नहीं है।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ में व्यक्तित्व निर्माण की कार्यपद्धित उपदेशात्मक नहीं बल्कि आचरण शैली की है। संस्कार निर्मित गुण के विकास का उपक्रम व्याख्यान, प्रवचन या उपदेश द्वारा नहीं अपितु जिन गुणों का सर्जन करना है आचरण से किया जाता है। वकील साहब ताउम्र इसका पालन करते रहे । अविचलित कर्मयोग में विश्वास करने वाले वकील साहब संघ के इस संकल्प को शब्दश: अपनाने में कभी गुरेज नहीं रखते थे।
आपातकाल के बाद 1979 में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ को सहकारिता में सक्रिय करने के लिए स्थापित सहकार भारती की आज देश के 400 जिलों और 725 ताल्लुकाओं में मजबूत इकाईयां है। सहकारी आंदोलन से जुड़े तमाम हस्तियों ने महसूस किया कि आने वाले दिनों में सहकार भारती जल्द ही खुद को अग्रणी सहकारी संस्था के तौर पर परिवर्तित कर लेगी। वकील साहब के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए अगले दस साल में सहकार भारती को सहकारिता क्षेत्र की अव्वल संस्था बना लेने की कार्ययोजना की रुपरेखा तय की गई। वकील साहब के सहकारिता क्षेत्र में बेमिसाल योगदान को देखते हुए भारत सरकार के कृषि विभाग ने लक्ष्मणराव इनामदार के नाम पर राष्ट्रीय पुरस्कार की घोषणा की है। देश के कृषि सहकारिता क्षेत्र में अग्रणी काम करने वाले शख्स को यह पुरस्कार हर साल दिया जाएगा।–आलोक कुमार के आलेख से
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