हैदराबाद, 23 अगस्त| रियो ओलम्पिक में भारत को रजत पदक दिलाने वाली महिला बैडमिंटन खिलाड़ी पी.वी. सिंधु ने सोमवार को घर वापस आने के बाद कहा कि उन्हें अपने आप पर भरोसा था और वह पदक के बारे में नहीं सोच रही थीं। सिंधु ओलम्पिक के फाइनल में पहुंचकर रजत पदक हासिल करने वाली भारत की पहली बैडमिंटन खिलाड़ी हैं।
सिंधु ने कहा कि उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया और एक-एक कर मैच पर ध्यान दिया।
उनका मानना है कि पिछले दो महीनों में की गई अथक मेहनत और उनके, उनके परिवार और कोच पुलेला गोपीचंद द्वारा किए गए कई बलिदानों का नतीजा बेहतर रहा।
सिंधु ने कहा, “यह मेरा पहला ओलम्पिक था। मैं काफी उत्साहित थी। मेरा लक्ष्य अच्छा खेलना और अपना सौ फीसदी देना था। मैंने पदक के बारे में कभी नहीं सोचा था। हमने एक बार में एक मैच पर ध्यान दिया और अपनी रणनीति बनाई।”
सिंधु को फाइनल में विश्व की सर्वोच्च वरीयता खिलाड़ी स्पेन की कैरोलिना मारिन ने हराया था।
सिंधु से जब पूछा गया कि क्या उन्होंने सोचा था कि वह इस ओलम्पिक में यहां तक पहुंचेगी। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि उन्हें अपने आप पर भरोसा था।
विश्व की 10वीं वरीयता प्राप्त खिलाड़ी ने कहा, “मुझे अपने आप पर विश्वास था। मैंने वहां जाकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दिया। मैं ऐसा करने में सफल रही। जब मैं ओलम्पिक में गई थी तो मैंने नहीं सोचा था कि मैं फाइनल में खेलूंगी, लेकिन इसके बाद मैंने अपने आप पर भरोसा रखा। मुझे लगा कि मुझे अपना पूरा प्रयास करना चाहिए इसके बाद परिणाम अपने आप आएंगे।”
हवाईअड्डे से गच्चीबाउली स्टेडियम तक ‘विजय यात्रा’ में हिस्सा लेने के बाद सिंधु ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि वह इस बात से खुश हैं कि उनका ओलम्पिक पदक जीतने का सपना उनके पहले ओलम्पिक में ही पूरा हो गया।
रजत पदक विजेता ने कहा, “मुझे गर्व है कि मैं यह कर पाई और मुझे इसके लिए पूरे देश से बधाइयां मिल रहीं हैं। यह शानदार अहसास है। जिम्मेदारी हमेशा बड़ी रहेगी। मैं आगे बढ़ने की कोशिश करूंगी।”
सिंधु से जब पूछा गया कि साथी खिलाड़ी सायना नेहवाल से आगे निकल कर उन्हें कैसा महसूस हो रहा है। उन्होंने जवाब में सायना की प्रशंसा की और कहा कि उन्होंने काफी टूर्नामेंट जीते हैं।
सिंधु के पदक जीतने के बाद ‘सिंधुइज्म’ काफी चर्चा में है। सिंधु से जब इस नाम के बारे में और उनके एक प्ररेणास्त्रोत के तौर पर उभर के आने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह अलग तरह की अनुभूति है।
उन्होंने कहा, “मैं जब वहां थी तब मेरे पास फोन भी नहीं था। मुझे बाद में इसके बारे में बताया गया। यह अलग ऊहसास है। कई मुझे प्ररेणास्त्रोत बताते हैं। मैं सिर्फ इतना कह सकती हूं कि कड़ी मेहनत ही सफलता की कुंजी है।”
विश्व चैम्पियनशिप में दो बार कांस्य पदक जीतने वाली सिंधु ने कहा कि उनकी कोशिश देश के लिए और उपलब्धियां हासिल करने की होगी।
उन्होंने अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता और कोच को दिया।
उन्होंने कहा, “मैं अपने माता-पिता की शुक्रगुजार हूं। मेरे लिए उन्होंने काफी बलिदान दिए हैं। मैं आज यहां उन्हीं की वजह से हूं।”
अपने कोच के बारे में सिंधु ने कहा कि वह पुलेला गोपीचंद जैसा कोच पाकर काफी भाग्यशाली महसूस कर रही हैं।
उन्होंने कहा, “पिछले दो महीनों से हमने काफी मेहनत की है और काफी बलिदान दिए हैं, जो सफल रहे। मैंने खेल में बदलाव किए थे जो सफल साबित हुए।”
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