मध्यप्रदेश में छह सौ से ज्यादा ऐसे स्थानों को चुना गया है, जहाँ गौ-शालाएं स्थापित की जा सकती हैं।
प्रदेश के आठ जिलों में गौ शाला संचालन के लिए विभिन्न संस्थाओं ने रुचि दिखाई है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों भी गौ-शालाओं के प्रबंधन को प्रभावी बनाने में आगे आ रहे हैं।
बायफ जैसी संस्थाएँ गौ-शाला गोद लेने को तैयार हैं। नौ हजार से ज्यादा बेसहारा गौ-वंश को आसरा देने का काम शुरू हो गया है।
गौ-शाला नीति का मसौदा तैयार कर लिया गया है। गौ-शाला विधेयक का ड्राफ्ट भी तैयार किया जा रहा है।
प्रदेश में इतने विशाल स्तर पर बेसहारा पशुओं को आसरा देने का काम पहली बार हो रहा है।
मुख्यमंत्री कमल नाथ ने बुद्धवार को भोपाल में मंत्रालय में गौ-शाला प्रोजेक्ट की प्रगति की समीक्षा की और इस पर अगले तीन सप्ताह में ठोस कार्रवाई करने के निर्देश दिये।
मुख्यमंत्री ने प्रदेश में काम कर रही औद्योगिक कंपनियों के सोशल कॉर्पोरेट रिस्पांसिबिलिटी फण्ड के उपयोग की गाईड लाइन में गौ-शाला के संचालन के लिये भी फंड देने का प्रावधान शामिल करने के निर्देश दिए।
बेसहारा पशुओं की समस्या वाले जिलों में युद्ध स्तर पर काम शुरू करने को कहा है। उन्होंने सभी सम्बंधित विभागों के बजट का बेहतर उपयोग करने के निर्देश देते हुए कहा कि अगले तीन सप्ताह में गौ-शाला का स्वरुप जमीन पर उतारना चाहिए।
गौ-शाला संचालन की एजेंसियों की प्राथमिकताएँ तय
गौ-शाला के संचालन में पहली प्राथमिकता जिला प्रशासन, दूसरी प्राथमिकता पंचायत, तीसरी स्व-सहायता समूहों और चौथी प्राथमिकता प्रतिबद्ध स्वयं-सेवी संस्था को देने के निर्देश दिये हैं।
उन्होने कहा कि गैर वन गाँवों में गौ-शाला के संचालन की जिम्मेदारी पशुपालन विभाग की होगी जबकि वन-गाँवों में वन विभाग गौ-शालाओं का संचालन करेगा।
मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में अपर मुख्य सचिवों की समन्वय समन्वय समिति बनाने के निर्देश दिए।
गौ-शाला संचालन में सभी स्तर की पंचायतों और पंचायत सचिवों की जिम्मेदारी भी तय करने को कहा है।
बैठक में पशुपालन मंत्री लाखन सिंह यादव, ग्रामीण विकास मंत्री कमलेश्वर पटेल, कृषि मंत्री सचिन यादव, मुख्य सचिव एस.आर. मोहंती और संबंधित विभागों के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
Follow @JansamacharNews