नई दिल्ली,24 जुलाई (जनसमा)। “भारत की आत्मा, बहुलवाद और सहिष्णुता में बसती है। भारत केवल एक भौगोलिक सत्ता नहीं है। यह बात भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्र के नाम विदाई संदेश में कही।
मुखर्जी ने कहा ” हम तर्क-वितर्क कर सकते हैं, हम सहमत हो सकते हैं या हम सहमत नहीं हो सकते हैं। परंतु हम विविध विचारों की आवश्यक मौजूदगी को नहीं नकार सकते। अन्यथा हमारी विचार प्रक्रिया का मूल स्वरूप नष्ट हो जाएगा।”
उन्होंने कहा “भारत की आत्मा, बहुलवाद और सहिष्णुता में बसती है। भारत केवल एक भौगोलिक सत्ता नहीं है। इसमें विचारों, दर्शन, बौद्धिकता, औद्योगिक प्रतिभा, शिल्प, नवान्वेषण और अनुभव का इतिहास शामिल है। सदियों के दौरान, विचारों को आत्मसात करके हमारे समाज का बहुलवाद निर्मित हुआ है। संस्कृति, पंथ और भाषा की विविधता ही भारत को विशेष बनाती है। हमें सहिष्णुता से शक्ति प्राप्त होती है। यह शताब्दियों से हमारी सामूहिक चेतना का अंग रही है। जन संवाद के विभिन्न पहलू हैं।”
फाइल फोटो : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
मुखर्जी ने कहा “विकास को वास्तविक बनाने के लिए, देश के सबसे गरीब को यह महसूस होना चाहिए कि वह राष्ट्र गाथा का एक भाग है।”
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा : एक आधुनिक राष्ट्र का निर्माण कुछ आवश्यक मूल तत्वों – प्रत्येक नागरिक के लिए लोकतंत्र अथवा समान अधिकार, प्रत्येक पंथ के लिए निरपेक्षता अथवा समान स्वतंत्रता, प्रत्येक प्रांत की समानता तथा आर्थिक समता पर होता है।
उन्होंने विदा वेला के अवसर पर अपने अनुभव को तीन बिन्दुओं से साझा करते हुए कहा “जैसे-जैसे व्यक्ति की आयु बढ़ती है, उसकी उपदेश देने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। परंतु मेरे पास देने के लिए कोई उपदेश नहीं है। पिछले पचास वर्षों के सार्वजनिक जीवन के दौरान –
- भारत का संविधान मेरा पवित्र ग्रंथ रहा है;
- भारत की संसद मेरा मंदिर रहा है; और
- भारत की जनता की सेवा मेरी अभिलाषा रही है।
उन्होंने विनीत होते हुए कहा “मैं पद मुक्त होने की पूर्व संध्या पर, मेरे प्रति व्यक्त किए गए विश्वास और भरोसे के लिए भारत की जनता, उनके निर्वाचित प्रतिनिधियों और राजनीतिक दलों के हार्दिक आभार से अभिभूत हूं।”
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