नई दिल्ली, 11 अक्टूबर (जनसमा)। देश में खेलों के द्वारा हम महिलाओं और लड़कियों के जीवन में बडा परिवर्तन ला सकते हैं तथा उनके सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है। यह विचार देश के कुछ प्रसिद्ध खिलाडियों ने एक परिचर्चा में व्यक्त किये।
इस परिचर्चा में यूनिसेफ के सद्भावना दूत सचिन तेंदुलकर ने कहा कि मेरे जीवन की उपलब्धियां मेरे माता-पिता और परिजनों से प्रेरित है, जिन्होंने मेरी प्रतिभा को बढ़ावा देने के साथ ही बचपन से ही मेरा सहयोग किया।
सचिन बुद्धवार को बालिकाओं के सशक्तिकरण में खेलों की भूमिका विषय पर आयोजित एक पैनल परिचर्चा में बोल रहे थे। यह परिचर्चा अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर महिला और बाल विकास मंत्रालय तथा यूनिसेफ ने मिलकर आयोजित की थी।
इस परिचर्चा में यूनिसेफ के सद्भावना दूत सचिन तेंदूलकर, भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज, भारतीय महिलाओं की राष्ट्रीय बॉस्केट बॉल टीम की पूर्व कप्तान रसप्रीत सिधु, विशेष ओलंपिक एथलीट रागिनी शर्मा, कराटे चैम्पियन माना मंडलेकर और अंतर्राष्ट्रीय पैरा तैराक तथा ग्वालियर, मध्यप्रदेश से बीबीबीपी चैम्पियन रजनी झा ने भाग लिया।
The Sportspersons Sachin Tendulkar, Mithali Raj, Raspreet Sidhu, Ragini Sharma and Mana Mandlekar take part in a panel discussion on ‘The Role of Sports in the Empowerment of Girls’, on the occasion of the International Day of the Girl Child, organised by the Ministry of WCD in collaboration with UNICEF India, in New Delhi on October 11, 2017.
महिला और बाल विकास मंत्री श्रीमती मेनका संजय गांधी ने परिचर्चा की शुरूआत की। इस अवसर पर यूनिसेफ भारत की प्रतिनिधि डॉ यास्मिन अली हक और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में सचिव राकेश श्रीवास्तव भी उपस्थित थे।
तेंदुलकर ने कहा कि पालकों और समुदायों को अपनी बेटियों को अनमोल समझना चाहिए। उन्हें यह समझने की आवश्यकता है कि बोझ समझ कर जल्दी से बेटियों का विवाह करने की बजाय एक व्यक्ति के तौर पर बेटियों को स्वावलंबी बनाकर समाज में योगदान देने लायक बनाना चाहिए। इसके लिए बेटियों पर निवेश करने की आवश्यकता है जैसा कि भारत सरकार कर रही है।
उन्होंने कहा कि हमें माता-पिताओं के सिर से वित्तीय बोझ कम करना चाहिए ताकि लड़कियां अपनी शिक्षा पूरी कर सकें और समाज में अपनी क्षमताओं के अनुरूप कदम उठाये तथा अपनी आकांक्षाओं को पूरा करें। हमें माता-पिताओं की चिंताओं का समाधान कर उन्हें संभावित बदलाव लाने में शामिल करना चाहिए।
सचिन ने कहा “बाल विवाह और अन्य सामाजिक दबावों से बच्चे की प्रगति बाधित होती है। मैं बाल विवाह निषेध और हमारी लड़कियों के लिए बेहतर दुनिया बनाने का पक्षधर हूं।”
ओलंपिक पैरा एथलीट रागिनी शर्मा ने कहा कि लैंगिकता से परे एक खिलाडी सामाजिक, शारीरिक और सामुदायिक बाधाओं को पार कर सकता है। मैं सरकार के बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओं कार्यक्रम के सराहना करती हूं जिससे देशभर में लोगों के विचारों में बदलाव आया कि हम सब मिलकर कैसे बालिका का जीवन सुनिश्चित कर सकते हैं और उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में फलने फुलने का समान अवसर दे सकते हैं।
जानीमानी क्रिकेटर मिताली राज ने कहा कि एक खिलाड़ी के तौर पर मुझे विश्वास है कि लैंगिकता मायने नहीं रखती है। प्रत्येक बच्चे को खेलों में भाग लेना चाहिए क्योंकि इससे टीम भावना को बढ़ावा मिलता है, मानसिक ताकत बढ़ती है, बच्चे स्वस्थ रहते हैं और इससे वे जीवन की चुनौतियों का मुकाबला करने में सक्षम बनते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय पैरा तैराक रश्मि झा ने भारत सरकार के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (बीबीबीपी) कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि “लड़कियों और लड़कों, महिलाओं और पुरुषों के लिए समानता हमारे अपने घरों और जीवन से ही शुरू करके हासिल की जाती है। घर, स्कूल और कॉलेज में एक सक्षम और सहयोगी वातावरण लड़कियों के लिए विभिन्न बाधाओं को दूर करने और अधिक से अधिक लड़कियों को खेलों के लिए प्रोत्साहित करके लैंगिक समानता की दिशा में काफी मदद कर सकता है।”
शुरुआत में श्रीमती मेनका संजय गांधी ने बताया कि महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किया गया ‘बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओं कार्यक्रम’ लड़कियों का मान बढ़ाने और उनके अधिकारों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने के लिए प्रतिबद्ध है।
महिला और बाल विकास मंत्री ने जानकारी दी कि 161 जिलों में शुरू किये गये इस कार्यक्रम के परिणाम अत्यधिक उत्साहवर्द्धक हैं। उन्होंने कहा कि 2015-2016 और 2016-2017 की अवधि में 104 जिलों में जन्म के समय लिंगानुपात (एसआरबी) में सुधार देखा गया, 119 जिलों में एएनसी पंजीकरण की तुलना में पहली तिमाही में पंजीकरण में प्रगति दर्ज हुई और 146 जिलों में अस्पतालों में प्रसव कराने की स्थिति में सुधार हुआ।
श्रीमती मेनका संजय गांधी ने कहा कि खेल इस कार्यक्रम का एक ऐसा पहलू है जो महिलाओं और लड़कियों के जीवन में परिवर्तन लाने तथा उनके सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। आज हम लड़कियों के कौशल के प्रदर्शन और उनकी आकांक्षाओं को हासिल करने के लिए मंच के तौर पर खेलों की बेहतर भूमिका का पहचान रहे हैं।
भारत में यूनीसेफ की प्रतिनिधि डॉ. यास्मिन अली हक ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस सभी लड़कियों की जरूरतों और अवसरों पर ध्यान आकर्षित करने के लिए बहु क्षेत्रीय साझेदारी जारी रखने की दीर्घकालिक प्रतिबद्धता है। तीन प्राथमिकताओँ जिससे लड़कियों की स्थिति में बदलाव आ सकता है वे हैं लड़कियों की शिक्षा, बाल विवाह पर रोक और उनकी सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित करना।
Follow @JansamacharNews