नई दिल्ली, 10 अप्रैल। सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौते (Indus Waters Treaty) को चुनौती देती याचिका खारिज कर दी। याचिकाकर्ता मनोहर लाल शर्मा ने अपनी याचिका में कहा था कि यह औपचारिक रूप से संधि नहीं, बल्कि दो देशों के नेताओं के बीच एक निजी रज़ामंदी भर है। इसको औपचारिक रूप से दोनों सरकारों ने मान्यता नहीं दी है। इस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर नहीं हुए थे।
न्यायालय ने कहा कि यह समझौता दोनों पड़ोसी देशों के लिए अच्छा साबित हुआ है। सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह केहर, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की सदस्यता वाली पीठ ने अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा की याचिका को खारिज करते हुए कहा, यह समझौता पिछली आधी सदी से दोनों देशों के लिए अच्छा रहा है।
गौरतलब है कि सिंधु जल समझौता (Indus Waters Treaty) भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी के जल बंटवारे को लेकर एक संधि है। तीन हजार 180 किलोमीटर लंबी सिंधु नदी एशिया की सबसे लंबी नदी है, जो तिब्बत के मानसरोवर से शुरू होकर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, पंजाब होते हुए गिलगिट-बाल्टिस्तान, खैबर पख्तुनख्वा, पाक के हिस्से वाले पंजाब, सिंध से गुजरते हुए अरब सागर में गिरती है। 1960 के समझौते के अनुसार, भारत को पूर्वी क्षेत्र की तीन नदियों रावी, ब्यास और सतलज पर पूर्ण नियंत्रण का अधिकार दिया गया, और पाकिस्तान को पश्चिमी क्षेत्र की सिंध, चिनाब और झेलम के पानी के इस्तेमाल का हक दिया गया।
1960 में हुए सिंधु जल समझौते(Indus Waters Treaty) पर नेहरू और अयूब खान ने दस्तखत किए थे।
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