चित्रकूट, 2 नवंबर। उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड में चित्रकूट जिले के अकबरपुर गांव में टीबी का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। आलम यह है कि यहां हर घर में टीबी का एक मरीज है। गांव में इस बीमारी के पीछे यहां पत्थर के कारोबार को मुख्य कारण बताया गया है। अकबरपुर गांव के निवासी चिंतावन (42) छह महीने से टीबी से पीड़ित हैं। उन्होंने सरकारी अस्पताल में इलाज कराया, लेकिन बीमारी ठीक नहीं हो पाई। आज चिंतावन के सीने की पसलियां दिखने लगी हैं और शरीर दिन-ब-दिन सूखता जा रहा है। वह कहते हैं, “खांसी तेज होती जा रही है।”
गौरी (60) के बेटे कौशल (20) को तीन साल से टीबी है। वह कहती हैं, “हमें उसकी बीमारी का पता सोनापुर स्वास्थ्य केन्द्र से लगा। अब कौशल का इलाज जानकीपुर अस्पताल में चल रहा है।”
राम मिलन (45) आठ महीने का टीबी का पूरा इलाज करा चुके हैं, फिर भी उन्हें 15-15 दिन पर बुखार आता रहता है। वह कहते हैं, “मैंने बहुत दवा खाई, पर अब फिर से डॉक्टर को दिखाने की सोच रहा हूं।”
झुग्गियों में रहने वाले इस बीमारी की चपेट में हैं, क्योंकि उनके आस-पास रहने वालों से यह संक्रमण दोबारा उन्हें हो जाता है।
स्थानीय निवासियों के अनुसार, गांव में बीमारी की प्रमुख वजह पत्थर का कारोबार है। गांव के अधिकांश लोग पत्थर तोड़ने का काम करते हैं और पत्थर तोड़ने की क्रेशर मशीन गांव में ही लगी है। लेकिन स्वास्थ्य विभाग इस मुद्दे को लेकर बहुत गंभीर भी नहीं है।
छह महीने पहले टीबी का इलाज पूरा कर चुके गुलजार कहते हैं, “लोग जब ठीक रहते हैं, पत्थर तोड़ने के काम में ही लगे रहते हैं और एक बार टीबी हो जाने पर इस बीमारी के कारण मर जाते हैं।”
लोगों का यह भी कहना है कि टीबी के इलाज की शुरुआत में चक्कर और उलटी जैसी परेशानियों के कारण अधिकांश मरीज दवा बीच में ही छोड़ देते हैं। ऐसे ही एक मरीज भैया लाल (50) हैं। चक्कर आने के कारण उन्होंने दवा खाना छोड़ दिया। लेकिन कुछ मरीज ऐसे भी हैं, जो दवा का पूरा कोर्स कर रहे हैं।
ऐसी ही एक मरीज भूरी कहती हैं, “दवा खाकर ऐसा लगता है जैसे मैंने शराब पी रखी है, पर मैं दवा नहीं छोड़ सकती।”
गांव में डॉट्स की दवा देने वाली आशा कार्यकर्ता मन्दा देवी के पास 12 टीबी मरीजों को दवा खिलाने की जिम्मेदारी है। वह कहती हैं, “मैं मरीज को डॉक्टर के पास ले जाती हूं, जहां उनकी बलगम की जांच होती है। जांच में टीबी निकलने पर फिर डॉट्स का इलाज शुरू होता है।”
मन्दा कहती हैं, “तैलीय और खट्टी चीजें नहीं खानी चाहिए, मैं सभी को परहेज बताती हूं। अब लोग ऐसा नहीं करते हैं तो मेरी क्या गलती?”
जिला क्षय रोग अस्पताल, चित्रकूट के वरिष्ठ उपचार परिवेक्षक शैलेन्द्र निगम कहते हैं, “ज्यादा दवा होने के कारण मरीज दवा से डर जाते हैं, हालांकि हम उन्हें दवा खाने का तरीका भी बताते हैं कि सुबह से शाम तक आपको सारी दवा खानी है। लेकिन शुरुआत में दवा मरीज को ज्यादा तकलीफ देती है, और मरीज घबराकर दवा खाना छोड़ देते हैं। भारतपुर और बरगद में भी टीबी की बीमारी बहुत ज्यादा है, इसलिए हम समय-समय पर टीम भेजकर वहां जांच करवाते हैं और अगर कोई नया मरीज मिलता है तो उसका इलाज करवाते हैं।”(आईएएनएस/खबर लहरिया)
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