वह दिन महत्वपूर्ण होगा जब लोकतंत्र सार्वभौमिक मानदंड बन जाएगा और जब संयुक्त राष्ट्र संघ लोकतंत्र को अपनी संस्थाओं और कार्यकलापों में शामिल कर लेगा। तथापि, लोकतांत्रित देशों में आतंकवाद से जूझना काफी कठिन कार्य है।
मेरे देश और अन्य लोकतांत्रिक देशों के समक्ष अपना लोकतंत्र बनाए रखना, नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना और आतंकवादियों पर नियंत्रण पाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
मुझ से पहले अनेक वक्ताओं ने जिक्र किया है कि आतंकवादियों ने लोकतांत्रिक देशों की विशेषताओं का लाभ उठाते हुए विश्वभर में भयंकर तबाही मचाई है।
मुझे याद है कि लगभग दो दशक पूर्व जी-7 देशों के शिखर सम्मेलन ने आतंकवाद को सभ्य देशों के लिए सर्वाधिक गंभीर खतरे के रूप में स्वीकार किया था। उसके बाद से एयर इंडिया के कनिष्क विमान, लोकेरबी में पैन-एम एयरलाइंस में हुए विस्फोट से लेकर नैरोबी और दार-ए-सलाम में हाल में हुए विस्फोट की घटनाओं ने इस बात की पुष्टि की है।
आतंकवाद एक ऐसा खतरा है जो हम सभी को समान रूप से चुनौती दे रहा है। आतंकवाद के कारण विश्वभर में रोजाना मौतें होती हैं।
यह अंतर्राष्ट्रीय अपराधों में से सर्वाधिक दुर्दम्य, व्यापक और जघन्य अपराध है और इससे समाज में पुरुषों और महिलाओं के जीवन तथा अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए भारी खतरा है।
भारत में, हमें लगभग दो दशकों से आतंकवाद से जूझना पड़ रहा है जिसे हमारे एक पड़ौसी देश द्वारा मदद देकर भड़काया जा रहा है।
हमने इसका काफी सहनशीलता से सामना किया है लेकिन इस चुनौती का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए किसी को भी हमारी क्षमता पर संदेह नहीं करना चाहिए।
इसकी जड़ें विश्वभर में फैल चुकी हैं। आज, नशीली दवाओं, हथियारों तथा धन के अवैध व्यापार से इसके संबंध हैं।
संक्षेप में, आतंकवाद आज विश्व स्तर पर खतरा बन चुका है जिसका मुकाबला एक संगठित अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई से ही किया जा सकता है।
आतंकवाद के खिलाफ सामूहिक उपाय
हम सबको अपने मन-मस्तिष्क में यह बात हमेशा के लिए बैठा लेनी चाहिए कि आतंकवाद मानवता के प्रति एक अपराध है।
एक खुले समाज में एकतरफा उपायों को शायद ही मान्यता मिल सकती है, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से स्वीकृति पाना तो और भी कठिन है।
अतः विश्व के सभी खुले और सर्वसंग्राहक समुदायों का यह प्रमुख कार्य होना चाहिए कि वे इस खतरे से निपटने के लिए सामूहिक उपाय करें।
डर्बन में हुई शिखर बैठक में गुट निरपेक्ष आंदोलन में ऐसे सामूहिक उपाय विकसित करने के लिए 1999 में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाने का आह्वान किया है।
हमारा आग्रह है कि 1999 में सम्मेलन में एक अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन के लिए बातचीत करने की प्रक्रिया शुरू की जाए ताकि उन देशों और संगठनों के विरुद्ध सामूहिक कार्रवाई की जा सके जो आतंकवाद की पहल करते हैं, उसमें मदद देते हैं तथा उसे बढ़ावा देते हैं।
प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा में 24 सितम्बरए 1998 को न्यूयार्क में दिये गये भाषण का अंश। अटलजी का पूरा भाषण बृजेन्द्र रेही द्वारा संपादित और संकलित पुस्तक ‘अटलजी ने कहा’ में प्रकाशित किया गया है।
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