इस साल फरवरी और मार्च में कथक केन्द्र द्वारा आयोजित ‘कथक महोत्सव’ अपने आप में एक यादगार महोत्सव कहा जाएगा। यह महोत्सव कथक नृत्य की पुरानी पम्रापगत बंदिशों पर केंद्रित था। महोत्सव के दौरान कमानी सभागार में प्रस्तुत लगभग सभी कार्यक्रम दर्शकों द्वारा सराहे गए।
फोटो : नृत्य संरचना ‘विवक्षा’।
समारोह का शुभारंभ आईसीसीआर के महानिदेशक अमरेन्द्र खटाऊ ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया। इस अवसर पर केन्द्र की सलाहकार समिति की अध्यक्ष कमलिनी अस्थाना और निदेशक बी.बी. चुग भी उपस्थित थे।
‘महोत्सव’ की महत्वपूर्ण उपलब्धि रही, नृत्य संरचना ‘विवक्षा’। विवक्षा का अर्थ है- कहने की इच्छा। जयपुर घराने की प्रख्यात नृत्यांगना और केन्द्र में गुरू प्रेरणा श्रीमाली के निर्देशन में प्रस्तुत की गई इस नृत्य संरचना की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि संगीत, लय, प्रकाश, वेशभूषा और कलाकारों की भाव-भंगिमाएं – सब एक-दूसरे के साथ ऐसे सांमजस्य में थीं जैसे वर्षा ऋतु में सांझ के आकाश में अठखेलियां करते हुए रंग-बिरंगे बादल। यह शानदार नृत्य संरचना प्रेरणा श्रीमाली के लिए ‘मील का पत्थर’ साबित होगी।
इस नृत्य संरचना में निर्देशक ने न केवल मंच के ‘स्पेस’ का सार्थक व रचनात्मक उपयोग किया बल्कि संगीत के साथ पिरोई गई नृत्य की आवृत्तियां अपने आप में एक ऐसा प्रभाव छोड़ रही थीं कि जिसे देख-सुनकर दर्शक आनंद विभोर हो रहे थे।
शुरू में गुरू प्रेरणा श्रीमाली ने अपनी संकल्पना को स्पष्ट करते हुए कहा- ‘‘कथक के नृत्य संपदा का एक हिस्सा ‘परमेलू’ है
जो तबला, पखावज, घुंघरू के बोल, पशु-पक्षियों की ध्वनियां और शब्दों के प्रयोग सब एक तरह से कथक की भाषा का प्रतिनिधित्व करते हैं।’’
‘विवक्षा’ की संगीत संरचना संतोष सिन्हा ने की और वेशभूषा शिप्रा जोशी ने। दोनों का कलात्मक योगदान दर्शक हमेशा याद रखेंगे।
इस प्रस्तुति में जिन कलाकारों ने भाग लिया, वे थे- आरती श्रीवास्तव, निष्ठा बुदलाकोटी, शिवानी शर्मा, निहारिका कुशवाहा, विश्वदीप, शिप्रा जोशी, शिवालिका कटारिया तथा सोनम चैहान।
इस नृत्य संरचना में
जिन संगतकारों ने योग दिया वे थे- शकील अहमद (तबला), नासिर खान (सारंगी), फतेह अली (सितार), अनुराग (बाँसुरी), आशीष गंगानी (पखावज), अदिति, तरूणा, राधिका। साथ में गुरू प्रेरणा श्रीमाली ने पढ़न्त की।
कलाकारों की प्रस्तुतितियों ने नृत्य संरचना को संवारने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। महोत्सव के पहले दिन 27 फरवरी को आयोजित विविक्षा कार्यक्रम के अलावा वाराणसी के रविशंकर मिश्रा और माताप्रसाद मिश्रा ने कभी न भुलाई जाने वाली अपनी नृत्य-प्रस्तुति दी।
दिल्ली के कथक प्रेमियों के लिए दोनों भाईयों की नृत्य प्रस्तुति ने अपने समय के विख्यात कलाकार और गुरू स्व. दुर्गालान की यादों ताजा कर दिया। दोनों कलाकारों का जोश, समन्वय, सामंजस्य, तबले के साथ संगति के अद्भुत प्रयोग और लयकारी सभी कुछ दिल्ली के दर्शकों के लिए एक नया और सुखद अनुभव था। ऐसा लग रहा था कि लय की मधुरिम बौछार हो रही है।
दोनों मिश्रा बंधुओं का लय व ताल पर असाधारण नियंत्रण है और अंग की उपज उनकी विशेषता। इन नृत्यकारों की शिक्षा अपने समय की विख्यात नृत्यांगना अलखनंदा देवी से हुई थी। इनके साथ तबले पर संगत कर रहे थे – प्रीतम कुमार मिश्रा जबकि गायन में साथ दिया संतोष कुमार मिश्रा ने और सितार के सुर साधे नीरज मिश्रा ने।
महोत्सव की शुरूआत में जयपुर घराने की वरिष्ठ गुरू स्व. रोशन कुमारी की शिष्या नंदिता पुरी ने अपने नृत्य से दर्शकों से न केवल प्रशंसा बटोरी बल्कि गुरू से सीखी गई कुछ पुरानी चीजों को भी प्रस्तुत किया। नंदिता पुरी जानी-मानी कथक नृत्यांगना और टेलीविजन कलाकार हैं। उनके साथ तबले पर काशीनाथ मिश्र, गायन व होर्मोनियम वैभव मनकद, सांरगी पर संगीत मिश्रा और बांसुरी पर हिमांशु नंदा ने संगत की। नंदिता पुरी की नृत्य प्रस्तुति का अपना अलग ही अंदाज़ था।
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