सिनेमा पर समाज में बदलाव लाने का दबाव न हो : ऋचा चड्ढा

नई दिल्ली, 28 मार्च | अपने जीवंत और बोल्ड अभिनय के बल पर बॉलीवुड में अलग छाप छोड़ने वाली अभिनेत्री ऋचा चड्ढा अपने सामाजिक जीवन में यौन उत्पीड़न और लिंग आधारित भेदभाव के खिलाफ खुलकर आवाज उठाती रहती हैं। लेकिन उनका मानना है कि सिनेमा को समाज में बदलाव लाने के दवाब से मुक्त होना चाहिए।

ऋचा का कहना है कि समाज में बदलाव लाने की वास्तविक जिम्मेदारी राजनीति और नीति निर्माताओं की है।

ऋचा ने पिछले सप्ताह आईएएनएस को दिए साक्षात्कार में कहा, “मैं इसका झंडाबरदार नहीं बनना चाहती। सिनेमा पर समाज में बदलाव लाने का दायित्व नहीं होना चाहिए। निश्चित तौर पर ऐसी फिल्में बननी चाहिए जिनकी कुछ सार्थकता हो और किसी के लिए सकारात्मकता लाए, लेकिन कोई इसे बोझ की तरह नहीं लेना चाहता।”

ऋचा ने कहा, “कई बार आप सिर्फ कोई कहानी कहते हैं बजाय कि यह दिखाने के कि उसमें क्या सीख छिपी हुई है। हमें इस तरह के संदेशों के लिए अपने राजनीतिज्ञों की ओर देखना चाहिए, जिन्हें हम अपने प्रतिनिधि के तौर पर चुनते हैं, न कि अभिनेताओं को।”

जब उनसे पूछा गया कि क्या हमारे राजनीतिज्ञ सार्थक संदेश दे रहे हैं, तो उनका जवाब था, “बिल्कुल भी नहीं। और यही एक चीज उन्हें एकजुट बनाती है, चाहे वे किसी भी पार्टी के हों। वे अब प्रेरणा नहीं दे पा रहे और इसीलिए आज का युवा क्रिकेट खिलाड़ियों, फिल्मी सितारों और अन्य खेल सितारों से अधिक प्रेरित हो रहा है।”

यह सब कहने के बावजूद ऋचा स्वीकार करती हैं कि फिल्मों, फिल्मकारों और फिल्मी कलाकारों को जिम्मेदार होना चाहिए।

उन्होंने कहा, “हमें अनैतिक कार्य नहीं करने चाहिए, जैसे हमें महिलाओं की बुरी छवि नहीं दिखानी चाहिए या किसी खास समुदाय की खराब छवि पेश नहीं करना चाहिए या इस तरह के गाने ‘हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं..’ नहीं गाने चाहिए। ऐसी चीजें नहीं करनी चाहिए, लेकिन अनावश्यक दबाव भी नहीं होना चाहिए।”

ऋचा ने कहा, “जैसे जब हम किसी हत्यारे या बुरे व्यक्ति की कहानी कहते हैं तो हम पर अपराध के गुणगान का आरोप लगाया जाता है। लेकिन हम तो वास्तव में सिर्फ एक कहानी कह रहे होते हैं।”

निर्देशक दिबाकर बनर्जी की फिल्म ‘ओए लकी, लकी ओए’ से फिल्म करियर की शुरुआत करने वाली ऋचा को ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘फुकरे’ और ‘मसान’ जैसी फिल्मों ने पहचान दिलाई।

ऋचा कहती हैं कि फिल्मी सितारों को जिम्मेदारी दिखानी चाहिए, ताकि वे एक सार्थक संदेश फैला सकें।

ऋचा थोड़ा तीखा तेवर अपनाते हुए कहती हैं कि हॉलीवुड के सितारे समाज सेवा के कार्यो के लिए फुरसत निकाल लेते हैं, लेकिन हमारे यहां फिल्मी कलाकार हमेशा किसी जल्दबाजी में रहते हैं।

ऋचा कहती हैं, “मेरी इच्छा है कि हमारे यहां रॉयल्टी की व्यवस्था हो जाए या ऐसा कुछ जिससे कलाकार भविष्य को लेकर सुरक्षित महसूस करें। कम से कम बाहरी कलाकारों को अपना प्रचार खुद करना होता है। उन्हें कमरे के किराए, परिवार और अन्य दायित्वों की चिंता करनी होती है। इसलिए इन सब परिस्थितियों के बीच आप जो कुछ भी करते हैं, उसकी सराहना होनी चाहिए।”

जब ऋचा से पूछा गया कि वह किस चीज में अपना योगदान देना चाहेंगी तो उन्होंने अपनी आगामी फिल्म में सह-अभिनेत्री हॉलीवुड की डेमी मूर का उदाहरण देते हुए कहा, “बाल यौन शोषण और शिक्षा। आपके साथ बचपन में जो कुछ होता है, आपके पूरे जीवन पर उसका असर रहता है।”

ऋचा, डेमी मूर के साथ ‘लव सोनिया’ फिल्म में दिखाई देंगी। डेमी मूर अनेक समाजसेवा के कार्यो में शामिल रहने के लिए भी जानी जाती हैं।

इस छोटी सी मुलाकात में  गौर किया कि ऋचा निजी जीवन में भी पूर्वग्रहों को तोड़ने की लगातार कोशिश करती रहती हैं। वह होटल के कर्मचारी से चाय मांगती हैं और अपने जूठे कप में ही फिर से चाय लेती हैं।

वह कहती हैं, “उसी कप का इस्तेमाल करने में क्या बुराई है। मैं चाहती हूं कि पानी बचाया जाए।”

इतना ही नहीं जब एक होटल कर्मचारी उन्हें ‘जी सर’ कह देता है तो वह उसे टोकना नहीं भूलतीं और कहती हैं, “देखिए, कैसे लोगों के दिमाग में चीजें भरी जाती हैं। इसीलिए हमें ऐसी चीजों पर चर्चा करने के लिए एक मंच की जरूरत है।”

–राधिका भिरानी