शिमला 11 मई (जनसमा)। हि.प्र. राज्य जैव विविधता बोर्ड ने राज्य में तीन जैव प्रणालियों सहित 425 जैव विविधता प्रबन्धन समितियों का गठन किया है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ शिमला के तत्वावधान में पवित्र उपवनों की पहचान कर उन्हें हेरिटेज स्थल घोषित करने के लिए एक परियोजना क्रियान्वित की जा रही है। हिमाचल प्रदेश समृद्ध जैव संसाधनों का घर है, जिसका संरक्षण प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व है। अत्याधिक दोहन तथा एकाधिकार लाखों जैव संसाधनों के विलुप्त होने के लिए जिम्मेवार है, जिससे प्राणियों पर लगातार खतरा मंडरा रहा है।
अतिरिक्त मुख्य सचिव एवं राज्य जैव विविधता बोर्ड के अध्यक्ष तरूण कपूर ने यह बात आज यहां मीडिया के लिए आयोजित राज्य स्तरीय परिसंवाद कार्यशाला के शुभारम्भ अवसर पर कही।
उन्होंने मीडिया से विलुप्त होने के कगार पर जैव संसाधनों के महत्व तथा इन्हें बचाने के बारे में लोगों को जागरूक करने व जानकारी प्रदान करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि यह चिंता की बात है युवा पीढ़ी को विलुप्त हो रहे जैव संसाधनों की जानकारी नहीं है।
उन्होंने कहा कि आर्थिक तौर पर मूल्यवान लगभग 350 जैव संसाधनों का पता लगाया गया है। औषधीय पौधे राज्य से व्यापार की जाने वाली मुख्य घटकों में शामिल हैं। प्रति वर्ष करोड़ों रुपये के 2500 मीट्रिक टन गैर लकड़ी वन उत्पादों का व्यापार होता है।
बोर्ड के दिशा निर्देशों, क्रियाकलापों तथा संभावनाओं का सिंहावलोकन करते हुए हि.प्र. राज्य जैव विविधता बोर्ड के संयुक्त सदस्य सचिव कुनाल सत्यार्थी ने राज्य की समस्त ग्राम पंचायतों, पंचायत समितियों तथा जिला परिषद स्तर पर बीएमसी के निर्माण की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि राज्य की 90 प्रतिशत से अधिक आबादी गांवों में रहती है, जहां समृद्ध जैव सम्पदा विद्यमान हैं और दो तिहाई भूमि वनों के अधीन है।
उन्होंने कहा कि विभिन्न बीमारियों के उपचार के लिए स्थानीय लोगों व वैद्यों द्वारा लगभग 500 औषधीय पौधों का प्रयोग किया जाता है। अकेले बागवानी क्षेत्र राज्य में सालान 4000 करोड़ रुपये की आर्थिकी सृजित करता है।
उन्होंने कहा कि जैव विविधता अधिनियमों की उल्लंघना पर सजा का कड़ा प्रावधान है, जिसके अन्तर्गत पांच साल की कैद व दस लाख रुपये तक जुर्माना अथवा दोनों शामिल हैं। उन्होंने कहा कि अधिनियम जैव विविधता के संरक्षण, इसके घटकों का सतत उपयोग तथा जेनेटिक संसाधनों के उपयोग से लाभ का वाजिव हिस्सा प्रदान करना सुनिश्चित बनाता है।
पर्यावरण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की निदेशक अर्चना शर्मा ने कहा कि भारतवर्ष में जानवरों व पौधों की पांच से दस मिलियन प्रजातियां विद्यमान हैं, जिनमें से 1.70 मीलियन पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं, जबकि दो मिलियन अगले दशक में विलुप्त होने का अनुमान है। उन्होंने कहा कि बोर्ड द्वारा खतरे में प्रजातियों की सूची तैयार की जा रहा है।
बोर्ड के प्रधान वैज्ञानिक अधिकारी कामराज कायस्थ तथा राज्य परियोजना समन्वयक डॉ. एम.एल. ठाकुर ने भी अधिनियम के प्रावधानों तथा बोर्ड के कार्यकलापों पर विस्तृत प्रस्तुतियां दी।
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