पटना, 25 फरवरी | बिहार के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और गंगा मुक्ति अंदोलन के संयोजक अनिल प्रकाश का मानना है कि गंगा को निर्मल बनाने के लिए उसकी सफाई करने की जरूरत नहीं, बल्कि गंगा में गंदगी गिराने वालों को रोकने और नदी को अविरल बहते रहने देने की जरूरत है। गंगा में स्वयं शुद्धिकरण की क्षमता है। उन्होंने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पश्चिम बंगाल के फरक्का बांध को बंद करने की बात कर रहे हैं। यह तो पर्यावरणविदों की शुरू से ही मांग रही है।
फोटो : मकर संक्रांति के अवसर पर 14 जनवरी, 2017 को गंगा में स्नान करते श्रद्धालु। (फोटो: आईएएनएस)
केंद्र सरकार की गंगा संबंधी योजना ‘नमामि गंगे’ और बिहार सरकार के फरक्का बांध विरोधी अभियान के बाद एक बार फिर गंगा की समस्याएं चर्चा में हैं। ऐसे में गंगा मुक्ति आंदोलन के संयोजक और संस्थापक अनिल प्रकाश आईएएनएस से विशेष मुलाकात में बताया कि गंगा को हाल के दिनों में कभी मुक्त नहीं रहने दिया गया।
उन्होंने कहा कि कभी गंगा पर जमींदारों का तो कभी ठकेदारों का कब्जा रहा और अब औद्योगिक घरानों के बड़े-बड़े कारखाने इसे प्रदूषित कर रहे हैं।
अनिल ने बताया कि गंगा को जमींदारों से मुक्त कराने के लिए साल 1982 के 22 फरवरी से आंदोलन शुरू किया गया, जिसे ‘गंगा मुक्ति आंदोलन’ के नाम से जाना जाता है। इसे मछुआरों के साथ-साथ गंगा किनारे रहने वाले किसान, नौजवान, कलाकार और समाज के दूसरे प्रगतिशील लोगों ने मिलकर 1991 में अंजाम तक पहुंचाया।
सामाजिक कार्यकर्ता अनिल आईएएनएस से कहते हैं कि इस आंदोलन का नारा ही ‘गंगा को अविरल बहने दो, गंगा को निर्मल रहने दो’ रहा है।
नीतीश कुमार की फरक्का बैराज बंद करने की मांग के विषय में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह कई पर्यावरणविदों की मांग रही है। उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि नीतीश एक ओर फरक्का बांध बंद करने की बात कर रहे हैं, वहीं कमला नदी पर बांध बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं।
उन्होंने स्पष्ट कहा, “किसी भी नदी की प्रकृति से छेड़छाड़ की जाएगी तो वह मानव के विनाश का कारण बनेगी। आज बिहार में बाढ़ का बहुत बड़ा कारण नदियों पर तटबंध और नदियों पर बने बांध हैं।”
गंगा मुक्ति आंदोलन के विषय में अनिल कहते हैं, “गंगा मुक्ति आंदोलन ने मनुष्य और मनुष्य के बीच और मनुष्य तथा प्रति के बीच चल रहे हर प्रकार के शोषण दोहन के खिलाफ संघर्ष का ऐलान किया और संघर्ष भी किया। यही कारण है कि गंगा मुक्ति आंदोलन एक वैचारिक स्कूल बन गया। इस आंदोलन से जुड़े लोग आज देशभर में फैले हैं।”
गंगा मुक्ति के विषय में अनिल कहते हैं कि गंगा की मुक्ति के लिए प्रत्येक नगरिक के पहल करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, “गंगा बांध, बैराज, पुल, प्रदूषण, गाद ,पानी की लूट जैसी समस्याओं से जूझ रही है। सरकार गंगा की हालत सुधारने के लिए योजनाएं बनाती हैं, लेकिन गंगा की हालत सुधरती नहीं और भी बिगड़ जाती है। 1986 में गंगा एक्शन प्लान बनाया गया और वर्तमान सरकार ‘नमामि गंगे’ लेकर आई है। बिहार सरकार फरक्का बांध के खिलाफत कर रही है। पर इससे अब तक हुआ क्या है?”
गंगा को निर्मल बनाने की योजना के विषय में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “गंगा को साफ रखने की अवधारणा ही सही नहीं है। अवधारणा तो यह होनी चाहिए कि गंगा को गंदा ही मत करो। गंगा में स्वयं शुद्धिकरण की क्षमता है। जहां गंगा का पानी साफ हो, वहां से जल लेकर यदि किसी बोतल में रखें तो यह सालों-साल सड़ता नहीं है। वैज्ञानिकों ने हैजे के जीवाणुओं को इस पानी में डालकर देखा तो पाया कि चार घंटे बाद जीवाणु नष्ट हो गए थे।”
उन्होंने कहा कि जब फरक्का बांध बनने की योजना बनाई गई थी, तभी अभियंता कपिल भट्टाचार्य ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि ‘फरक्का बैराज बनने से और कुछ हो या न हो, गंगा जरूर तबाह हो जाएगी। प्रतिवर्ष गंगा में भयानक बाढ़ आएगी और हजारों एकड़ जमीन को काटती-डुबाती चलेगी। सबसे बड़ी बात कि फरक्का जिन लक्ष्यों के लिए बनाया जा रहा है, वे लक्ष्य कभी भी पूरे नहीं होंगे’ और यह बात आज सच साबित हो रही है।
— मनोज पाठक
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