Traditional knowledge is disappearing from our collective memory

पारंपरिक ज्ञान हमारी सामूहिक स्मृति से हो रहा है ओझल 

नई दिल्ली, 10 फरवरी। राष्ट्रपति ने चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा कि भारत के पास पारंपरिक ज्ञान का अमूल्य भंडार है। यह ज्ञान दशकों से पारंपरिक रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित होता रहा है। लेकिन अब कई पारंपरिक कौशल ख़त्म होते जा रहे हैं। यह ज्ञान परंपरा लुप्त होने के कगार पर है।

राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने नई दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में आज आदि महोत्सव 2024 का उद्घाटन कर रही थी।

उन्होंने कहा जिस तरह कई वनस्पतियां और जीव-जंतु विलुप्त हो रहे हैं, उसी तरह पारंपरिक ज्ञान भी हमारी सामूहिक स्मृति से ओझल हो रहा है। हमारा प्रयास यह होना चाहिए कि हम इस अमूल्य खजाने को संचित करें और आज की आवश्यकता के अनुसार इसका उचित उपयोग भी करें। इस प्रयास में प्रौद्योगिकी भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

उन्होंने कहा कि यह देश के कोने-कोने के जन-जातीय भाई-बहनों की जीवनशैली, संगीत, कला और खानपान के बारे में जानने का अच्छा अवसर है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस महोत्सव के दौरान लोगों को जन-जातीय समाज के जीवन के विभिन्न पहलुओं को जानने और समझने का अवसर मिलेगा।

राष्ट्रपति ने कहा कि जैसे-जैसे आधुनिकता आगे बढ़ी, इसने धरती माता और प्रकृति को बहुत नुकसान पहुंचाया है। विकास की अंधी दौड़ में इस धारणा को बल देने का माहौल बनाया गया कि प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना प्रगति संभव नहीं है। लेकिन सच्चाई इसके उलट है।

उन्होंने कहा दुनिया भर में जन-जातीय समुदाय सदियों से प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रह रहे हैं। हमारे जन-जातीय भाई-बहन अपने जीवन के हर पहलू में आसपास के पर्यावरण, पेड़-पौधों और जानवरों का ख्याल रखते रहे हैं। हम उनकी जीवनशैली से प्रेरणा ले सकते हैं। आज जब पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने का प्रयास कर रही है, तब जन-जातीय समुदाय की जीवनशैली और भी अनुकरणीय हो जाती है।