Vaccination या टीकाकरण ; कोरोना के प्रभाव से बचाव के लिए देशभर में 2 लाख से अधिक वृद्ध और दिव्यांगजनों का उनके घरों के पास ही टीकाकरण (vaccination) किया जा चुका है।
भारत सरकार ने 27 मई 2021 को वृद्ध और दिव्यांगजनों के लिए घर के पास टीकाकरण सेवाओं के लिए एक एडवाइजरी जारी की थी।
उन लोगों के लिए जिनके पास इंटरनेट या स्मार्ट फोन या यहां तक कि मोबाइल फोन तक पहुंच नहीं है, सभी सरकारी टीकाकरण केंद्रों पर मुफ्त ऑन साइट पंजीकरण (वॉक.इन) कराने और टीकाकरण (vaccination) की सुविधा उपलब्ध है।
अब तक दिए गए टीके की खुराकों में 80 प्रतिशत ऑन.साइट टीकाकरण (vaccination) मोड में दी गई हैं। ऑन.साइट ;या वॉक.इन टीकाकरण में पंजीकरण और टीकाकरण प्रमाणपत्र जारी करने का काम टीका देने वाले करते हैं। लाभार्थी को केवल बुनियादी न्यूनतम आवश्यक जानकारी देने की जरूरत होती है।
Vaccination या टीकाकरण का लाभ लेने के लिए आधार, मतदाता फोटो पहचान पत्र, फोटो के साथ राशन कार्ड और दिव्यांगता पहचान पत्र आदि सहित नौ पहचान पत्रों में से एक की जरूरत होती है।
इसके अलावा राष्ट्रीय औसत की तुलना में जनजातीय जिलों में कोविड-19 टीकाकरण कवरेज बेहतर पाया गया है।
आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि 70 प्रतिशत से अधिक टीकाकरण केंद्र, ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित 26,000 से अधिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में हैं।
कुछ मीडिया रिपोर्टों में यह आरोप लगाया गया है कि तकनीकी जरूरतों की अनुपलब्धता के कारण बेघर लोगों को कोविड-19 टीकाकरण के लिए पंजीकरण करने से ‘रोका गया और साफ तौर पर छोड़ दिया गया’ है।
इन रिपोर्टों में आगे कहा गया है कि ‘डिजिटल रूप से पंजीकरण करने की आवश्यकता’, ‘अंग्रेजी का ज्ञान और कंप्यूटर या इंटरनेट से जुड़े स्मार्ट फोन तक पहुंच’ कुछ ऐसे कारक हैं, जो लोगों को टीकाकरण से वंचित करते हैं।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने एक विज्ञप्ति जारी कर इस तरह की खबरों का खंडन करते हुए आज कहा कि ये दावे निराधार हैं और तथ्यों पर आधारित नहीं हैं। यह साफ किया जाता है कि:
- एक मोबाइल फोन का स्वामित्व कोविड टीकाकरण के लिए कोई आधार नहीं है।
- टीकाकरण का लाभ लेने के लिए पता का प्रमाण प्रस्तुत करना भी अनिवार्य नहीं है।
- टीकाकरण का लाभ लेने के लिए को-विन पर ऑनलाइन पूर्व-पंजीकरण करना अनिवार्य नहीं है।
- उपयोग करने वालों को आसानी से समझ आने के लिए को-विन अब 12 भाषाओं में उपलब्ध है। इनमें हिंदी, मलयालम, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मराठी, गुजराती, ओड़िया, बंगाली, असमिया, गुरुमुखी (पंजाबी) और अंग्रेजी हैं।