भोपाल 12 मई (जनसमा)। माँ नर्मदा के तट पर अनूपपुर जिले के सीमांत ग्राम सिवनी संगम में कल्पवृक्ष के दर्शन बिना नर्मदा परिक्रमा पूरी नहीं होती। ऐसा परिक्रमावासियों एवं ग्रामवासियों का मानना है। ऐसा माना जाता है कि नर्मदा के इस तट पर 300 वर्ष पुराने कल्पवृक्ष के नीचे साधु-संतों ने तपस्या की थी। आज भी पेड़ के नीचे पृथ्वी के गर्भ में वे साधु तपस्यालीन है।
गाँव की बहन संतरी सिंह ने बताया कि कल्पवृक्ष के दर्शन से जहाँ मनोकामना पूर्ण होती हैं, वहीं तपस्यालीन साधुओं के पुण्य प्रताप से मोक्ष की प्राप्ति होती है। सामान्य दिनों में 15 से 20 परिक्रमावासी तथा शिवरात्रि एवं मकर संक्रांति के अवसर पर हजारों परिक्रमावासी कल्पवृक्ष के दर्शन करने आते हैं।
फोटो मप्र शासन : नर्मदा तट पर कपिलधारा से एक किलोमीटर दूर दुद्धारा जल प्रपात
70 वर्षीय ग्रामीण जिनका आवास कल्पवृक्ष के समीप है, ने बताया कि तीन पीढ़ियों से हमने वृक्ष को ऐसा ही देखा है। यह गाँव दूरांचल में है। सुविधाओं का अभाव परिक्रमावासियों को न हो इसलिए हम सब ग्रामवासी आपस में मिलकर यथासंभव सेवा करते हैं तथा नर्मदा परिक्रमा का पुण्य प्राप्त करते हैं।
ग्राम का नाम सिवनी संगम होने का कारण एक छोटी नदी सिवनी उसी स्थान में माँ नर्मदा की गोद समाहित होती है। नर्मदा नदी के तट में मिट्टी का कटाव होने के कारण कल्पवृक्ष पर मंडराते हुए खतरे के निवारण के लिये 20 लाख रुपए की लागत रिटर्निंग वाल, तट पर घाट निर्माण, चेंजिंग रूम तथा कचरा विसर्जन कुण्ड सहित धर्मशाला का निर्माण करा दिया गया है। साथ ही पहुँच मार्ग भी अब बन गए हैं।
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