नई दिल्ली, 02 मई। भारत निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा अपनी प्रस्तावित लाभार्थी योजनाओं के लिए विभिन्न सर्वेक्षणों की आड़ में मतदाताओं का विवरण प्राप्त करने से जुड़ी गतिविधियों को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123(1) के तहत रिश्वत देने का भ्रष्ट व्यवहार मानते हुए गंभीरता से लिया है।
आयोग ने कहा है कि, “कुछ राजनीतिक दल और उम्मीदवार ऐसी गतिविधियों में लगे हुए हैं, जो वैध सर्वेक्षणों तथा चुनाव के बाद लाभार्थी-उन्मुख योजनाओं के लिए व्यक्तियों को पंजीकृत करने के पक्षपातपूर्ण प्रयासों के बीच की रेखा को धुंधला कर देती हैं।”
आयोग ने मौजूदा आम चुनाव 2024 (loksabha election 2024) में विभिन्न मामलों के मद्देनजर आज एक एडवाइजरी जारी की है (लिंक: https://www.eci.gov.in/eci-backend/public/api/download? )। इसमें सभी राष्ट्रीय और राज्यों के राजनीतिक दलों को निर्देश दिया गया है कि वे विज्ञाप या सर्वेक्षण या एप्प के जरिए चुनाव के बाद लाभार्थी-उन्मुख योजनाओं के लिए व्यक्तियों को पंजीकृत करने जैसी गतिविधियां बंद करें।
आयोग ने कहा है कि चुनाव के बाद लाभ पाने के लिए पंजीकरण करने हेतु व्यक्तिगत मतदाताओं को आमंत्रित करने या उनका आह्वान करने का काम निर्वाचक और प्रस्तावित लाभ के बीच एक लेन-देन के रिश्ते की जरूरत का आभास पैदा कर सकता है, जिससे उन्हें एक विशेष तरीके से मतदान के लिए प्रलोभन प्राप्त होगा।
आयोग ने ये माना है कि सामान्य चुनावी वादे जहां स्वीकार्यता के दायरे में आते हैं, वहीं आयोग ने ये भी कहा कि नीचे दी गई तालिका में उल्लिखित ऐसी गतिविधियां भरोसेमंद सर्वेक्षणों और राजनीतिक लाभ के लिए कार्यक्रमों में लोगों को नामांकित करने के पक्षपाती प्रयासों के बीच अंतर को अस्पष्ट करती हैं।
ये सब वैध सर्वेक्षणों का रूप लिए होती हैं कि वे संभावित व्यक्तिगत लाभों से जुड़े सरकारी कार्यक्रमों या पार्टियों के एजेंडा के बारे में सूचित करने की गतिविधियां या प्रयास हैं।
आयोग ने सभी जिला निर्वाचन अधिकारियों को लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 127 ए, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 (1), और धारा 171 (बी) आईपीसी जैसे वैधानिक प्रावधानों के तहत ऐसे किसी भी विज्ञापन के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।
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