1975 – 25 जून – वो ऐसी काली रात थी, जो कोई भी लोकतंत्र प्रेमी भुला नहीं सकता है। कोई भारतवासी भुला नहीं सकता है। एक प्रकार से देश को जेलखाने में बदल दिया गया था। विरोधी स्वर को दबोच दिया गया था।
जयप्रकाश नारायण सहित देश के गणमान्य नेताओं को जेलों में बंद कर दिया था। …..
.…….उस समय अटल बिहारी वाजपेयी जी भी जेल में थे। जब आपातकाल को एक वर्ष हो गया, तो अटल जी ने एक कविता लिखी थी और उन्होंने उस समय की मनःस्थिति का वर्णन अपनी कविता में किया है।
झुलसाता जेठ मास,
शरद चाँदनी उदास,
झुलसाता जेठ मास,
शरद चाँदनी उदास,
सिसकी भरते सावन का,
अंतर्घट रीत गया,
एक बरस बीत गया,
एक बरस बीत गया ।।
सीखचों में सिमटा जग,
किंतु विकल प्राण विहग,
सीखचों में सिमटा जग,
किंतु विकल प्राण विहग,
धरती से अम्बर तक,
धरती से अम्बर तक,
गूंज मुक्ति गीत गया,
एक बरस बीत गया,
एक बरस बीत गया ।।
पथ निहारते नयन,
गिनते दिन पल-छिन,
पथ निहारते नयन,
गिनते दिन पल-छिन,
लौट कभी आएगा,
लौट कभी आएगा,
मन का जो मीत गया,
एक बरस बीत गया ।।
(25 जून 2017 को आकाशवाणी के मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के उद्बोधन से )
फोटो : अटलजी का यह फोटो कविता पाठ का नहीं है, सजावट के लिए है।
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